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बोलता नहीं लेकिन...

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है।

सच होंठ पर लेकिन आता तो है।


अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,

मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।


तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,

है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।


फिज़ाओं में यूँ ही नहीं है हलचल,

तीर चुपके से कोई चलाता तो है।


दुश्मन व्यवस्था को टुकड़े न समझें,

दिशाओं का आपस में नाता तो है।


खुद ही चप्पु न चलाओ तो क्या बने,

वक्त कश्ती में तुम्हें बिठाता तो है।


कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,

वक्त सब को आईना दिखाता तो है।


हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,

हँसना ज़माने को वरना आता तो है।
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39 comments:

SWAPN said...

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,

हँसना ज़माने को वरना आता तो है।

bahut khoobsurat prakash ji, badhai. swapn

Aarjav said...

अद्भुत !

विनय said...

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

Reetesh Gupta said...

कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,
वक्त सब को आईना दिखाता तो है।
हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।

बहुत खूब ..अच्छा लिखा है ...बधाई

"अर्श" said...

कभी कभी बेईमानी लगता है मीटर के पीछे भागना .. जब आपकी रचना पढ़ता हूँ ... बहोत ही खुबसूरत रचना है .. दुसरे शे'र में मैं आगया मगर इस संबोधन में मैं नहीं हूँ इतना ही शुक्र है ... आपको ढेरो बधाई साहब...

अर्श

आदर्श राठौर said...

जय हो प्रभु

गौतम राजरिशी said...

प्रकाश जी,ये तेवर ससुराल के हैं क्या? मजाक कर रहा था...
जबरदस्त गज़ल भईया
पाँचवां शेर कुछ उलझा गया है
"दुश्मन व्यवस्था को टुकड़े न समझें..." उलझ गया प्रकाश जी-कुछ प्रकाश डालें
आखिरी शेर और उससे पहले वाला तो बस कयामत है....

विष्णु बैरागी said...

अच्‍छी गजल है। पढकर अच्‍छा लगा।

प्रकाश बादल said...

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

प्रकाश बादल said...

राजरिशि भाई आप फौजी होकर ही उलझ गए तो औरों का क्या होगा। ये मेरी बहुत पहले लिखी हुई ग़ज़लों में से एक है लेकिन ये शेर पाकिस्तान सहित सभे उन लोगों के लिए है जो भारत को सोचता है कि भारत कई हिस्सों में बंटा है।

राज भाटिय़ा said...

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,

हँसना ज़माने को वरना आता तो है।
बहुत खुब जनाब, क्या बात कही आप ने.
धन्यवाद

विवेक सिंह said...

अद्भुत गजल ! पढकर अच्छा लगा !

दिल को छू लिया !

दिगम्बर नासवा said...

प्रकाश जी
एक बहुत शशक्त, दमदार, जोरदार, बेहतरीन ग़ज़ल. समझ नही आ रहा कोन सा शेर चुनु सबसे खूबसूरत कहने को. कई बार पढने के बाद भी सब के सब शेर एक से पढ़ कर एक लग रहे हैं. आदि से अंत तक संपूर्म ग़ज़ल, लयबद्ध, प्रवाह में बहती हुयी बेहतरीन रचना

डॉ .अनुराग said...

bahut achhe prkash ji......

रंजना said...

Waah ! Ek se badhkar ek sher.....lajawaab shayri....lajawaab gazal.

Aise hi likhte rahen,meri haardik shubhkaamnaye aapke saath hain.

Udan Tashtari said...

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,
हँसना ज़माने को वरना आता तो है।

-बस, यही तो बात है!! वाह! मेरी बात कह गये. आप मेरे अजीज हो भाई..नारजगी की बात कभी दिमाग में भी न लायें. :)

ARVI'nd said...

kya kahu prakash bhaiya.....mujhe gazal ka shauk nahi tha magar jabse aapka gazal padhna shuru kiya ka mujhpar gazal ka nasha chadh gaya hai....

राकेश प्रकाश said...

जनाब आपकी शायरी वाकई दमदार है। बादलों की भांति विचरते हुए इसी तरह रिमझिम फुहार की बारिश से लोगों को सराबोर करते रहें। आशा करता हूं जल्द ही आपकी नई गजल जल्द पढने को मिलेगी।
शुक्रिया

Harkirat Haqeer said...

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है।

सच होंठ पर लेकिन आता तो है।

kya bat hai Prakash ji ...!! bhot khoob....wah..!!!

MUFLIS said...

"कोई भी सँवरने को यहाँ नही राज़ी ,
वक्त सब को आईना दिखता तो है .."

वाह , बहुत ही खूबसूरत और प्रभावशाली खयाल है
ग़ज़ल के दीगर अश`आर भी दिलचस्प हैं .........
मुबारकबाद . . . . . !
---मुफलिस---

Puneet Sahalot said...

bhaiya ab taarif kaise karu...
har baar aap achhe se achha hi likhte hai. mere paas shabd hi nahi reh jate kuchh kehne k liye...

"हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,

हँसना ज़माने को वरना आता तो है।"

:)

sakhi with feelings said...

क्या लिखू ..आपका मीटर वाला ख्याल मुझे बहुत अच्छा लगा...सही कहा मीटर के लिए हम अहसास को नही मार सकते ..क्यों की अहसास को लिखते है बस.
आपकी हर ग़ज़ल बहुत उम्दा लगी मुझे ...अच्छा लगा आपका ब्लॉग

duao के साथ
सखी

saloni said...

vishwaas maniye me to aapki har ek rachna ki kayal hi gayi.vyakt karne ke liye mere paas shabd nahi hai.lajwaab.adbhut.

Krishna Patel said...

waah kya baat hai.itni gehraai se aap kaise likh lete hai.jaisa ki saloni ji ne kaha kayal to inka har kisi ko hona hai.aapki rachnaao ki tariff jitni karo utni kam lagti hai.bahut badhaai.

Anonymous said...

हर कोई नहीं लिख सकता इतनी अच्छी गज़ल

कुछ खास बात तो आप में है....

nram.2007@rediffmail.com

Dev said...

Prakash ji
Really nice poem..
कोई भी संवरने को यहां नहीं राज़ी,

वक्त सब को आईना दिखाता तो है।

Regards

manu said...

kamaal likha hai baadal ji,
ise pahle hind yugm par padhaaa thaa jab aap wahaan select huye the,,wo hi taazgi,,,wo hi ahsaas,,,

fir se ,,,waah waah,,,,waah,,,,!!!!!!!!!!

Vatsayan said...

अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,

मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।


तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,

है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।

aur kamayat hui jab ye lines samne aayi

हमारी जिद कि हम तमाशा न हुए,

हँसना ज़माने को वरना आता तो है।


jiyo saab jiyo hum aisi ghazal padh dhanya hue

Shastri said...

प्रकाश, पहले तो यह बताओ कि तुम इतना कम क्यों लिखते हो?? क्या सफाई देना चाहते हो?

अब आते हैं इस रचना पर:

"सच होंठ पर लेकिन आता तो है।"

मुझे लगता है कि जैसे जैसे तुम्हारी कलम चलती है वैसे वैसे अभिव्यक्ति सशक्त होती जा रही है.

सस्नेह -- शास्त्री

अनुपम अग्रवाल said...

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है।
सच होंठ पर लेकिन आता तो है।

कोइ तो है जो दिशाओँ को दिशा देकर
बरसता है बादल तो सच दिखाता तो है

Amit K Sagar said...

हमेशा की तरह वाह! क़यामत के असर हैं असार में!
---
luv u bhai

शोभा said...

बोलता नहीं लेकिन बड़बड़ाता तो है।

सच होंठ पर लेकिन आता तो है।


अर्श शौक से अब ओले उड़ेल दे,

मूंडे गए सरों के पास छाता तो है।
waah bahut sundar

रंजना [रंजू भाटिया] said...

तेरी मंज़िल मिले न मिले क्या पता,

है तय ये रस्ता कहीं जाता तो है।

आप तो बहुत खूब लिखते हैं प्रकाश जी ..बेहतरीन लगा आपका ब्लॉग ..

ARVI'nd said...

mera exam chal raha hai jis kaaran se mai pichle kuchh dino se mai aapka gazal padhne se mahroom raha lekin aaj wakt milte hi aapke blog par aaya....aapke gazal ko padhke hi ek ajeeb anubhuti hoti hai.....aage kya kahu mere tuchh shabd aapki taarif nahi kar sakti...

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wahwa....khoobsurat rachna...

Poonam Agrawal said...

Bahut khoob....ati sunder rachana hai aapki...

Badhai...

awtar said...

आपकी ग़ज़ल में अर्थ है, दम है. मीटर तो कपडा मापने के लिए ही ठीक है. "खुद ही"..और "कोई भी..." की सतरें बडिया हैं ..अवतार एंगिल

प्रकाश बादल said...

जिसने मुझे दिशा दी, जिसके संस्कार आज मेरी रगों में दौड़ रहे हैं, जिसकी कविताएँ पढ़कर मुझे प्रेरणा मिलती है, जिसका व्यक्तित्व मुझे आज भी प्रेरणा देता है, आज उसी शक़्स ने मेरी रचना को सराहा है इससे बड़ी टिप्पणी मेरे लिए क्या हो सकती है। प्रो. अवतार एनगिल मुझे कॉलेज के दिनों में अंगेज़ी पढ़ाते थे लेकिन मैं अंग्रेज़ी तो शायद खुलकर नहीं सीख सका और नालायक साबित हुआ परंतु प्रो,अवतार एनगिल से मुझे जो संस्कार मिले ,मैं आज जो टूटा-फ़ूटा लिखता हूँ यह सब उन्हीं संस्कारों की झलक मात्र है। आज मैं बहुत खुश हूँ। प्रो. एनगिल का आभार भी कैसे व्यक्त करूँ???? कभी मुलाकात होगी तो चरण स्पर्श करूँगा।

rajnish said...

बन्दिशे अल्फाज़ ही नहीं काफी
जिगर का खून भी चाहिये गज़ल के लिये

मीटर में हो या ना हो क्या फर्क़ पडता है,हां तब फर्क़ ज़रूर पडता है कि जब आप के पास केहने को कुछ ना हो.


आप कलम से नहीं दिल से लिख रहे हैं और मेरे लिये ये काफी है.


www.aahang.wordpress.com

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