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ऐसा नहीं कि ज़िन्दा जंगल नहीं है....


ऐसा नहीं के ज़िंदा जंगल नहीं है।
गांव के नसीब बस पीपल नहीं है।


ये आंदोलन नेताओं के पास हैं गिरवी,
दाल रोटी के मसलों का इनमें हल नहीं है।


चील, गिद्ध, कव्वे भी अब गीत गाते हैं,
मैं भी हूं शोक में, अकेली कोयल नहीं है।


ज़रूरी नहीं के मकसद हो उसका हरियाली,
विश्वासपात्रों में मानसून का बादल नहीं है।


उसके सीने से गुज़री तो आह निकल गई,
जो मेरी ग़ज़ल को कहता रहा,ग़ज़ल नहीं है।


जिनका पसीना उगलता है बिजलियां,
रौशनी का नसीब उन्हें आंचल नहीं है।
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20 comments:

नीरज गोस्वामी said...

ऐसा नहीं के ज़िंदा जंगल नहीं है।
गांव के नसीब बस पीपल नहीं है।
बहुत खूब...पूरी ग़ज़ल ही दिलकश है...
नीरज

गौतम राजरिशी said...

क्या कहूं प्रकाश जी विगत कई दिनों से आ-आ कर आपकी गज़लें पढ़ रहा हूं

..बस अपनी फैन-फ़ेहरिश्त में हमारा नाम भी जोड़ लें

Udan Tashtari said...

पैनापन और पैना हो लिया है...गज़ब भाई!!

"अर्श" said...

bahot khub sahab bahot hi khub likha hai aapne dhero badhai swikar karen...

प्रदीप मानोरिया said...

ये आंदोलन नेताओं के पास हैं गिरवी,

दाल रोटी के मसलों का इनमें हल नहीं है।

यथार्थ चिंतन बहुत सुंदर बधाई

अशोक मधुप said...

बहुत अच्छी गजल

Anonymous said...

vaah Prakashbhai kya khoob gajal likhte ho

Sunil Verma
vermasunilsml@yahoo.com

bhoothnath said...

भाई प्रकाश इस ग़ज़ल पर मैं भी थोड़ा-थोड़ा आपका मुरीद हुआ...अभी बस मगर.थोड़ा-थोड़ा..

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया भाई भूत नाथ जी।

प्रकाश बादल said...

नीरज भाई,गौतम भाई,समीर लाल भाई,अर्ष भाई, प्रदीप मनोरिया भाई,अशोक मधुप भाई,एवं सुनील भाई,

आपकी टिप्पणी से गदगद हूं। शुक्रिया। आपका स्नेह मुझे और अच्छा लिखने पर प्रेरित करता है।

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर, इस बार कुछ ज्यादा ही पेना पन है.
अच्छी लगी.
धन्यवाद

प्रकाश बादल said...

राज भाई को शुक्रिया। हम आपके साथ हैं। आप जहां भी रहें मेरी और मेरे परिवार की शुभकामनाएं। इसलीए नहीं कि आपने मेरी गज़ल की प्रशंसा की बल्कि इसलिये कि आप सात समंदर पार अपने वतन के लिए चिंचित हैं।

Birds Watching Group Ratlam (M.P.) said...

achchi lagi aapki kavita

prakrati prem jhalakataa hai

http://birdswatchinggroupratlam.blogspot.com log karen

Amit K. Sagar said...

आप जल्द ही नंबर पर पुकारे जायेंगे! मेरा यकीन करें.
---
कई हादसे सिर्फ़ मेरे यकीन पर हुए
मैं दुआ करता हूँ
कभी बद्दुआ सा यकीन न हो मेरा
---
bas...carry on...

JHAROKHA said...

Prakash ji,
Mere blog par ane ke liye dhanyavad.Apkee gazalen maine padhee.Kafee prabhavshali hain.Hardik shubhkamnaen.

रंजना said...

लजवाब है प्रकाश जी, बहुत बहुत सुंदर।जितने सुंदर भाव हैं उतनी ही सुंदर शब्द संरचना। यथार्थ के रंग मे रंगी ग़ज़ल सीधे मन को छू जाती है।बहुत बहुत आभार।

प्रदीप मानोरिया said...

लाज़बाब ग़ज़ल हर बार की तरह !!! सुंदर बधाई

Think Chimp said...

Good one,I'm gonna come back again and again!!

karmowala said...

you are right and true write in that words amazing i have no word express my feeling about that line

नरेश सिह राठौङ said...

बहुत सुंदर भाव हैं यथार्थ के रंग मे रंगी ग़ज़ल मन को छू जाती है। बहुत बहुत आभार।

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