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सच के लिबास में......

सच के लिबास में दिखाई देना।

और पेशा है झूठी सफाई देना।


यूं चीखने से बात नहीं बनती,

मायने रखता है सुनाई देना।


लाद गया वो किताबों के भारी बस्ते,

मैने कहा था बच्चों को पढ़ाई देना।


जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,

फिर मुझे नए साल की बधाई देना।


कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।


परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।
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79 comments:

विवेक सिंह said...

वाह वाह वाह वाह & वाह ! बेहतरीन गज़ल !

अनुपम अग्रवाल said...

जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,
फिर नए साल की बधाई देना।
कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,
बीमार ग़रीबों को दवाई देना।

बहुत ही अच्छी बात और कम शब्दों में .
सुंदर अभिव्यक्ति

Anonymous said...

जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,

फिर मुझे नए साल की बधाई देना।

क्या खूब कहा है बादल जी, आपकी ग़ज़ल दिल को छू गई यूं तो सभी शेर बहुत अच्छे लेकिन ऊपर लिखा शेर कमाल का है। वाह वाह
सुनील वर्मा

vermasunilsml@yahoo.com

रंजना said...

वाह ! भावभरी सुंदर और सार्थक ग़ज़ल मन को छू गई.आभार .

गौतम राजरिशी said...

"यूं चीखने से बात नहीं बनती,मायने रखता है सुनाई देना"... और "जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,फिर मुझे नए साल की बधाई देना"

क्या खूब अंदाज है प्रकाश जी,,,,सुभानल्लाह

प्रदीप मानोरिया said...

लाद गया वो किताबों के भारी बस्ते,

मैने कहा था बच्चों को पढ़ाई देना।
गज़ब चिंतन सहज भाषा
प्रणाम

manu said...

बादल जी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी ....इसके नीचे वाली दूसरी ग़ज़ल का मतला और भी अच्छा लगा "तू मेरे ख्यालों की बस ऊंची उड़ान रख "
और भूमिका भी ....
आलोचक भी होना ...प्रसंशक होने जितना ही ज़रूरी मानता हूँ.....मगर निंदक होना ..या किसी को भी हतोत्साहित करना..
ये ना प्रशंसक के काम हैं ...ना आलोचक के .....लेखक का मनोबल गिराना मेरी समझ से तो साहित्यिक अपराध है....जिसकी सजा किसी को नहीं मिलती ..या पूरी दुनिया को मिलती है...

एक शेर कहा था अपने बारे में....आधा आपके भी काम का लगा सो लिखता हूँ , आधा ही ..

"" हाँ , दाना भी थे कुछ , मगर बेदाद बहुत थे..""

कभी कहीं छापूंगा तो आपको भी बुलाऊंगा पढ़ने के लिए....
ई.मेल से.....
ब्लॉग से.....
SMS से .....
फ़ोन से.......
दिल से ......

तब ज़रूर आइयेगा......

प्रकाश बादल said...

भाई विवेक जी,अनुपम अग्रवाल जी,रंजना जी सुनील जी,गौतम जी और मनोरिया जी,

आपका स्नेह और प्रतिक्रिया देने से बेहद खुश हुआ हूं आपके इस स्नेह से ज़ाहिर है मेरी लेखनी में निखार आने के आसार जगेंगे। आप सभी का आभार।

राज भाटिय़ा said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।
बहुत सच लिखा है असली पुजा तो यही है.
धन्यवाद

Udan Tashtari said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,
बीमार ग़रीबों को दवाई देना।


--बहुत सुन्दर संदेश...वाह!! एक उम्दा रचना के लिए बधाई.

Neelima said...

प्रकाश बादक जी, गज़ल वाकई भावों से परिपूर्ण ,सादगी और अपनापन लिए है ! लिखते रहिए ,सुनाते रहिए यूं ही !

योगेन्द्र मौदगिल said...

कर मीटर की ऐसी-तैसी
कहते हो भई कैसी-कैसी
डीयर बादल गजल तुम्हारी
अलमस्त खिलंदड़-अल्हड़ जैसी
--योगेन्द्र मौदगिल

Amit K. Sagar said...

तो अब छोडो भी न सब पिछला?
ये बात ओर कि कल के बिना आज कहाँ?
---
समझ रहे हो न...
--
अब समझ ही गए हो तो हमेशा की तरह इस उम्दा रचना के लिए वधाई स्वीकारो भाई. ओर जारी रहो...
---
वो दिन यकीनना किसी और बड़ी अच्छाई का संकेत था...यकीन करना...
कई हादसे सिर्फ़ मेरे यकीन पे हुए हैं.!
---

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Prakash ji, aapki rachanayen padkar aapke bhavon ki aapke kathya ki aapke lekhan ki behad kadra karata hoon, Itne anoothe aur sunder bhav har ek ke khate men nahin aate aur na itni sunder rachna har ek ke boote ki baat hai, yah kewal ek rachanakar hi janata hai ki bhavon ke sujhane aur unehen bandhane men kitna kashta jhelana padata hai. men aapko itani sunder rachana ke liye badhai deta hoon, par sath hi punah kahana chahoonga ki aap thoda sa prayas karen to ghazal ki duniya ko achchhi ghazalen de sakte hain. Asal men mujhe dukh is baat ka hai ki ek sambhavanaon se bhara poora rahcanakar jhoothi wah wahi ke chakkar men galat raste par chala ja raha hai. Ghazal ko ghazal kahane ke liye ghazal ke niyamon men bandhana nitant aawashyak hai.main aapki rachana se bahut prabhavit hoon lekin use ghazal maankar uski jhoothi prashansa karke aapko galat raaste par dhakel kar gumrah karna jaisa lagata hai.Main aapko gumraah karne men apne ko bhagidaar banana nahin chaahta hoon.Aap to Satpalji aur Dwij ji ke sampark men hain to fir ghazalen niyamanusar kyon nahi likh sakte.
Bhai badalji main aap men ek utkrashta ghazalkar ki aseem sambhavanayen dekh raha hoon isiliye aapse baar baar kah raha hoon ki aap ghazalen bahar men likhane ka prayas karen. Kewal ek baar aap bahar men likh kar to dekhen is se aap ko khud hi parivartan anubhav hone lagega. aap wahwahi ke chakkar men galat raste par jaane se apne aap ko rokiye.Ant men punah anurodh hai ki mere likhe ko swasth mansikta se utsahit hoker dekhen hatotsahit hoker nahin.Shubhkamnaon sahit;
Chandrabhan Bhardwaj

A Bisht said...

टेक पत्रिका के लिए आपने जो सुखद शब्द कहे उनके लिए आपका धन्यवाद । आपका ब्लाग टेक पत्रिका के ब्लागरोल में है ।

धन्यवाद

प्रकाश बादल said...

भाई मनु जी,


आपने जो मेरा मनोबल बढ़ाया है उसके लिए मैं आपका आभारी हूं। दरअसल मेरे ख्याल आपके ख्यालों से बहुत मिलते हैं कुछ लोग खारिज करना चाहते हैं कुछ संभावनाएं तलाश करते हैं। आप संभावनाओं की पहचान रखते हैं। इसीलिए आपकी टिप्पणी की लालसा तब से रहती है जब आपने मेरा प्रोत्साहन उस समय किया जब कोई अपना नाम लिए मात्र मुझे ख़ारिज करने के मन से आया था। लेकिन आपने मात्र मेरे क्थ्य के वज़न को ही ध्यान दिया। वरना ये मैं अच्छी तरह से जानता हूं की बहर और वज़्न का आपको अच्छा खासा इल्म है मेरी कमियों को आपने जिस हुनर से उजागर किया वो वाकेई आपको एक अच्छा इंसान और समर्थ समीक्षक साबित करता है। आपका ऋणी हो गया।

मोहन वशिष्‍ठ said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।


परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।

वाह जी प्रकाश जी बहुत ही सुंदर और संदेशप्रद हैं बधाई हो आपको

seema gupta said...

wonderful words and thoughts. Good work. Regards

Mired Mirage said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

"अर्श" said...

prakash bhai bahot hi khub likha hai aapne bahot hi badhiya bhav bhare...
dhero badhai aapko..


arsh

Amit K. Sagar said...

यार, इसको तो जितनी बार पढता हूँ उतनी ही बार वाह वाह वाह कहने को मन करता है. वाह...कमाल लिखा है...और क़यामत भी बेशुमार...

शिवराज गूजर. said...

यूं चीखने से बात नहीं बनती,

मायने रखता है सुनाई देना।
bahut hi badiya badal ji. badhai.mere blog par comment kar mera utsaah badane ke liye main aabhari hoon. aage bhi aap mera utsaah vardhan karte rahenge, isi aasha ke saath

डॉ .अनुराग said...

यूं चीखने से बात नहीं बनती,
मायने रखता है सुनाई देना।

अच्छा लगा पढ़कर .कई बार कुछ भाव किसी विधा में नही बंधते है .....इसलिए विचारो को बहने दे....

डाकिया बाबू said...

आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला। वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। कभी आप हमारे ब्लॉग पर भी आयें !!

Laxmi N. Gupta said...

बढ़िया ग़ज़ल है, प्रकाश जी। बधाई।

रविकांत पाण्डेय said...

प्रकाश जी,
प्रभावशाली गजल लिखी है आपने। हर शेर पसंद आया।

अबयज़ ख़ान said...

जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,
फिर मुझे नए साल की बधाई देना।
कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,
बीमार ग़रीबों को दवाई देना।

बादल जी, क्या ख़ूब लाइन लिखीं हैं आपने। आपके जज़बात बेहद शानदार हैं। मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया। आप मीटर से बाहर होकर भी बहुत शानदार हैं। आपकी क़लम हमेशा सलामत रहे।

आदर्श राठौर said...

खूबसूरत

Pyaasa Sajal said...

maanna hoga kamaal ki soch hai...ab to yahaan aate rehna hoga :)

Pyaasa Sajal said...

sabke ashirvaad se ek aur haasy-vyang ki rachna prastut hai :)

http://pyasasajal.blogspot.com/2008/12/blog-post_5104.html

Aarjav said...

ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद ! आपके प्रोत्साहन से प्रफुल्लित हुआ !
यह अलग बात है की कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सका लेकिन कई बार आपके ब्लॉग पर आ चुका हूँ ! इसका सबूत आपको यह बताकर दे सकता हूँ कि अपने ब्लॉग के टाइटल बार में एक सुंदर सी तस्वीर आपने इधर बीच ही लगायी है, जिससे उसका रूप कुछ और निखर आया है !
आपकी ग़ज़लों में एक धार है ! इतनी पैनी कि छूते ही चीर देती है .....! !

अनुपम अग्रवाल said...

lag raha hai koi intzaar kar rahe hain

Anonymous said...

bhai ji aap u hi badte rahe hamien dil se khushi hogi. aap ki gajlein dil ko chhoone wali hai. sanjay saini

दिगम्बर नासवा said...

प्रकाश जी
खूबसूरत ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब है
हकीकत लिखना भी ग़ज़ल या कविता की एक वास्तविकता है

chandershekhar said...

bahoot khub likha hai ye man ko sukun deta hai u hi likhate rahiye...

Harkirat Haqeer said...

परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।

aapki lekhni ki jitni tarif karun kum hai... satik aur gahri... bhot khoob !!

Sanjay Saini said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।

yeh panktiyan suhanalla!
cogratulate!Saini

Harkirat Haqeer said...

कुछ रहे वही दर्द के काफिले साथ
कुछ रहा आप सब का स्‍नेह भरा साथ
पलकें झपकीं तो देखा...
बिछड़ गया था इक और बरस का साथ...

नव वर्ष की शुभ कामनाएं..

manu said...

आपको नया साल मुबारक हो बादल जी...........
४२ टिप्पणियों के नीचे दबा हुआ हूँ.............ज़रा ध्यान दे लेना.....

hempandey said...

'परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।'
- बहुत गहरी बात.

amit said...

आपकी ग़ज़ल दिल को छू गई

Pyaasa Sajal said...

नये साल की सुभकामनायें

Suresh Gupta said...

बहुत सुंदर और सच्ची बातें कही हैं आपने इस गजल में.
आपको नए साल की शुभकामनाएं.

sandhyagupta said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!

गौतम राजरिशी said...

प्रकाश जी को नया साल बहुत-बहुत मुबारक हो...मैं तो वापस इस पोस्ट पर आया था आपको नये साल की शुभकामनायें देने और फिर तमाम तिप्पणीयां पढ़ गया....खास कर मनु जी और चंद्रभान जी की बातें ....मनु जी तो ह दिल-अज़ीज बन चुके हैं,किंतु चंद्रभान जी की बातों से मैं भी सहमत हूं,एक इतना सक्षम गज़लकार आपमें बसा हुआ है कि शायद आपको भी मालूम नहीं....खैर,नये साल पर आपके लिये समस्त खुशियों की दुआ के साथ,ये मनाता हूं कि आपकी कलम ऐसे ही कयामत ढ़ाती रहे,बहर या बेबहर...

रेनू जैन said...

यूं चीखने से बात नहीं बनती,

मायने रखता है सुनाई देना।


लाद गया वो किताबों के भारी बस्ते,

मैने कहा था बच्चों को पढ़ाई देना।

वाह प्रकाश जी, ये दो शेर काफ़ी खूबसूरत हैं.

जहाँ तक मीटर का सवाल है, प्रकाश जी, जैसे अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से कहने के लिए सही व्याकरण होना आवश्यक है, ऐसे ही ग़ज़ल में भी सही प्रभाव के लिए कुछ नियमो का पालन आवश्यक है. मीटर हमारी भी कमज़ोरी है, किंतु नियम तो फिर भी नियम ही है.

Lucky said...

naye saal ki shubhkamnaye ........

ABODH said...

bahut achhi gazale hain bhai Badal ji, badhai!!!!!

dekho Feb me shimla ana hai, mulakaat hogi ?

Nirmla Kapila said...

dil chhoo liyaa aap ki gajal ne bahut bahut badhaai naya saal mubarak

रवि अजितसरिया said...

aap ka apna meter hai, shayad me bhi isi rah per chalta hoo. aap yoo hi likhte rahe, nav varsh ki hardik subhkamanaye.

रंजन राजन said...

जो दर्द दिए तूने उसका हिसाब कर,

फिर मुझे नए साल की बधाई देना।

.........लाजवाब.

नये साल की शुभकामनाएं..

shelley said...

सच के लिबास में दिखाई देना।

और पेशा है झूठी सफाई देना।
khobsurat gajal. aajkal aise hi log har chauraho par milte hain

Ashutosh Dubey said...

sir, bahut accha likha hai aapne!

नरेश सिह राठौङ said...

इस गजल के सभी शेर अपने से लगते है । बहुत अच्छा लगा पढकर

Harkirat Haqeer said...

ek bar fir aayi hun padhne aur hindyugm pr dvitiy sthan pane k liye aapko bhot bhot bdhai... agli bar pratham ki kamna k sath....

राधिका बुधकर said...

परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना। वाह बहुत ही सुंदर अभिवयक्ति .

Ram Shiv Murti Yadav said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।
...अतिसुन्दर प्रस्तुति, साधुवाद !! मेरे ''यदुकुल'' पर आपका स्वागत है....

sanjaykumar said...

that was a good one butGoli boys i was not aware of u r writing ability .god Maza aa gaya.Kuch bewafai pe bhi likiye.

Krishna Patel said...

bahut badhiyam hai.

Krishna Patel said...

bahut badhiyam hai.

प्रदीप कांत said...

परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।

Bahut badhiya

आशुतोष दुबे "सादिक" said...

aap ne mujhe jo pyar diya hai,iske liye aapko dhanyawaad,aap ka sneh isi tarah milta rahe,isi asha me hoon.

आदर्श राठौर said...

वाह..
कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।
जय हो....

'Yuva' said...

''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.

Reetesh Gupta said...

परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,
अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई देना।

बहुत सुंदर ...आपकी गज़ल में ईमानदारी और अपनापन है....बधाई

bhoothnath(नहीं भाई राजीव थेपडा) said...

मैं हिन्दी ग़ज़ल लिखने में रूचि रखता हूँ, बहुत से आलोचक मेरे पीछे मीटर लिए घूमते हैं। उनका तर्क है कि मैं मीटर में नहीं लिखता। मुझे किसी मीटर में रहना अर्थ की हत्या करना लगता है। मेरा प्रयास रहता कि मैं जो लिखूं उसका प्रभाव मन को छू जाए। मेरा प्रयास आप को कैसा लगा ज़रूर बताएं। आपकी प्रतिक्रिया से मुझे प्रोहत्साहन मिलेगा। स्नेहाकांक्षी : प्रकाश बादल.....................ये बात भाई प्रकाश जी आपने ही लिखी है ना भाई...?? असल में तो ग़ज़ल जिस चीज़ का नाम है,वो होती तो मीटर में ही है...मतलब रवानगी....!!......पता है आपको मैं भी अपनी लिखी "ग़ज़लें"तुफैल चतुर्वेदी जी को भेजा करता था.....कई बार मैंने ऐसा किया तो उन्होंने मुझे मेल किया कि मैं ये क्या उल-जुलूल चीज़ें उन्हें भेज रहा हूँ...और मुझे इस बाबत काफी कड़ी बातें लिखीं...उन्हें टाइम नहीं था मेरा मार्गदर्शन करने का....और कितनों का करें....आजकल तो हर कोई ग़ज़ल लिख रहा है....??...मगर मैंने उनकी इस बात का तनिक भी बुरा नहीं माना.....क्यूंकि ये बात मेरे संज्ञान में है....कि मेरी (यानि हम में से बहुतों की)गज़लों में क्या कमी है...!! सो भाई साहब जो कमी है,वो तो है ही...सो मीटर लेकर घुमने वालों का बुरा ना माने....वो शायद हमारे अच्छे के लिए ही तो है....अगर ये लोग ना हों तो हम लोग तो ग़ज़ल को गजाला ही बना डालें....ये निंदा नहीं...ये तो स्वस्थ आलोचना होती है....बाकी आपकी ग़ज़ल भी अच्छी ही बन पड़ी है....बेशक ग़ज़ल के मुकम्मल प्रतिमानों के अनुरूप ना हों...आजकल संदेश पर ज़ोर होता है....!!

अंकित "सफ़र" said...

नमस्कार बादल जी,
उम्दा रचना है आपकी, बधाई स्वीकारें.

Pratik Maheshwari said...

बहुत ही ज़बरदस्त...अति-सुंदर..
"मेरी माँ की कृतियाँ" पर टिपण्णी करने के लिए धन्यवाद..

अवाम said...

बहुत ही सुंदर और खुबसूरत रचना है आपकी. नव वर्ष की शुभकामनायें. नया साल आपको शुभ हो, मंगलमय हो.

Vijay Kumar said...

आपकी लेखनी समर्थ और संवेदन शील है .मुंबई हमले पर लिखे मेरे गीत को भी देखें और कृतार्थ करें. .

कीर्ति राणा said...

shukriya, aap accha likhte hai,
deve bhumi ki yatra ko yad karte hi mera man romanchit ho jata hai.
......................kirti rana

महावीर said...

बादल जी
आपकी रचना बहुत ही भावपूर्ण हैं। आपकी भावाव्यक्ति और शब्द-चयन के कायल हूं। मैं जानता हूं कि आपको यह चिंता भी है कि कहीं
मीटर के चक्कर में अर्थ ही न बदल जाएं। मैं आपकी इस बात का मान रखते हुए यह कहूंगा कि एक शब्द है 'कविता' जिसका साहित्य में बहुत ऊंचा और महत्वपूर्ण दर्जा है, या फिर दूसरा शब्द है 'नज़्म' या 'रचना'। आज के काव्य-साहित्य में नज़्म, कविता या रचनाओं की श्रेणी में अपनी रचनाओं को रखें सारी ही समस्या
दूर हो जाती हैं। इस तरहः
पहले, यदि मीटर झंझट लगता है तो आपको अर्थ की हत्या नहीं करनी पड़ेगी।
दूसरे, आपको ग़ज़ल की हत्या भी नहीं करनी पड़ेगी।
तीसरे, आपकी रचना/कविता रूप में हर तरह से आपके और हर व्यक्ति के अनुकूल होगी।
एक बात अवश्य कहूंगा कि यदि मैं दो कोई टेढ़ी
मेढ़ी पंक्तियां लिख कर कहूं कि बादल जी मैंने यह दोहा लिखा है (जिसमें दोहे की सी कोई बात ही नहीं दिखाई दे रही हो) चाहे कितने ही अच्छे भाव लिखे हों तो आप सीधे ही कहेंगे कि रचना तो
बहुत अच्छी है पर इसे दोहा कहने में थोड़ी आपत्ति है।
आप इसे ग़ज़ल कह कर अपनी कविता/रचना शब्द का मान गिरा रहे हैं। मैं फिर दोहरा रहा हूं कि इतनी सुंदर रचना को ग़ज़ल कह कर'कविता' शब्द का अपमान ना कीजिए।
ग़ज़लकार दोस्तों ऐसा नहीं समझ लेना कि मैं इस वक्तव्य से ग़ज़ल शब्द का अपमान कर रहा हूं। बहरो-वज़न में लिखी ग़ज़ल की अपनी विधा है, अपना अलग अस्तित्व है।
बादल जी, यह आवश्यक नहीं कि मेरे विचार आपके अनुकूल हों। यदि इस टिप्पणी को धृष्टता रूप में लें तो आपको पूरा अधिकार है कि इसे हटा सकते हैं क्योंकि मैं 'ब्रेन वाश' करने वाले आलोचकों में नहीं हूं।
आपके भीतर बैठे हुए कवि को नमन करता हूं।
महावीर शर्मा

प्रकाश बादल said...

आदरणीय महावीर जी,

आपने मेरी रचनाएं पढ़ीं, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। मैं कुछ लिखता हूं और कुछ लोगों ने बताया कि ये ग़ज़ल जैसा है तो मैने इसे ग़ज़ल के रूप में पुकार दिया। मैं मीटर के ख़िलाफ नहीं हूं लेकिन मीटर को अर्थ पर हावी नहीं होने देना चाहता ताकि जिस अदा से बात कही जानी चाहिए कह दूं। आपने भी इस बात में मेरा समर्थन किया कि मेरा कथ्य कहीं कुछ कहता है। इसी लिए मैं लिख रहा हूं कि जो मैं कह रहा हूं वो कोई न कोई मायने तो रख रहा है मेरी रचना जिसे जैसी लगे मैं चाहूँगा कि मुझे वैसी ही टिप्पणी मिलती रहे। मैं अपनी रचना को प्रस्तुत कर देता हूं मेरी रचना जो भी है उसका कोई तो नाम होगा इसलिए मैं इसके मुकम्मल नाम की खोज में हूं। आपका स्नेह बना रहेगा ऐसी मेरी उम्मीद है और आपका मेरी नज़रों में पूरा आदर और सम्मान रहेगा और मैं बहरो बज़्न की बारीकियों से भी इन दिनों दो-चार हो रहा हूं क्या पता मीटर में खुद-ब-खुद ही हो जाऊं।

shyam kori 'uday' said...

कितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,
बीमार ग़रीबों को दवाई देना।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

Jyotsna Pandey said...

बहुत खूब हर एक शेर अपने में मुकम्मल कविता है .
साधुवाद .......

ARVI'nd said...

prakash bhaiya aaj phir se aapki kavita,gazal ko jine ka mauka mila.....lekin phir bhi baar baar padhunga.

Dr.Parveen Chopra said...

वाह भाई वाह क्या गजब लिखा हैकितना अच्छा है पत्त्थर पूजने से,

बीमार ग़रीबों को दवाई देना।


परिंदो का पिजरे में लौट आना है अलग,

अलग बात है उन्हें पिंजरे से रिहाई दे ---
बहुत ही अच्छा लगा, प्रकाश जी।

मस्तानों का महक़मा said...

प्रकाश बादल जी .... बहुत ही खूबसूरत लाइने है आपकी इस गज़ल में ।
मैंने आपका ब्लोग पहली बार पड़ा है और पहली बार में ही आपकी सुंदर गज़ल दिल को छू गई । जहां जहां आप यादों मे हो वहा आपकी सोच बहुत अच्छी है और जहां जहां आप विवरण में हो वहां आपके शब्द अच्छे है ।

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत दिनों के बाद
एक ऐसी ग़ज़ल पढ़ी,
जो सचमुच
मन को छू गई!

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