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जब हों जेबें खाली.......


जब हों जेबें खाली साहब।
फिर क्या ईद दीवाली साहब।

तिनका - तिनका जिसने जोड़ा,
वो चिडिया डाली-डाली साहब।

सब करतब मजबूरी निकलेँगे,
जो बंदर से आंख मिला ली साहब।

कंक्रीटी भाषा बेशक सबकी हो,
पर अपनी तो हरियाली साहब।


मौसम ने सब रंग धो दिये,
सारी भेडें काली साहब।

आधार की बातें, सब किस्से उसके,
दो बैंगन को थाली साहब।

जब अच्छे से जांचा - परखा,
सारे रिश्ते जाली साहब।


(इस गज़ल को दोबारा इस लिये पोस्ट कर रहा हूं क्योंके एक काबिले गौर शेर इससे छूट गया था, पठकों की बेबाक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी )
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20 comments:

adil farsi said...

तिनका-तिनका जिसने जोडा,
वो चिडिया डाली-डाली साहब ।
बहुत अच्छी गजल है
प्रकाश बादल जी ,बधाई

Anonymous said...

बहुत अच्छी गजल। मजा आ गया
अशोक मधुप

प्रकाश बादल said...

आदिल भाई जब आप ज़ैसे स्नेही जन प्रोत्साहन देते हैं तो सारे मुकाम हासिल हो जाते हैं। शुक्रिया।

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया अशोक भाई

राहुल सि‍द्धार्थ said...

ati uttam. guroo parv kee badhaaee

ARVI'nd said...

jab achhe se jancha parkha, saare rishte jaali saahab.
dil ko chu gaya prakash bhai.
aur shukriya mera blog follow karne ke liye.

तेरे लिये said...

जब अच्छे से जांचा - परखा,
सारे रिश्ते जाली साहब।

-हक़ीक़त है

Shastri said...

प्रिय प्रकाश, छोटे भाई

1. तुम काफी उत्साही हो. चिट्ठाजगत में कडुवे अनुभव हो तो भी इस उत्साह को बुझने मत देना.

2. यह गजल एवं इसके पहले की गजल पढी. स्पष्ट है कि तुम्हारे मन मे काफी सारी भावनाये उमड रही हैं जिनको शब्दों में बांधने की कोशिश कर रहे हो. अच्ची कोशिश है.

एक एक करके भिन्न विषयों को लेकर लिखते रहो. काव्य की हर विधा का प्रयोग करो.

हफ्ते में कम से कम 1 या 2 पोस्ट जरूर अपने चिट्ठे पर दो.

सफलता तुम्हारे चरण चूमेगी!

सस्नेह -- शास्त्री

पुनश्च: कुछ दिन से यात्रा ही यात्रा से पाला पड रहा था, अत: सारथी पर भी कई दिन लेख न दे पाया था लेकिन कल से पुन: लेख देना चालू कर दिया है.

प्रकाश बादल said...

आदरणीय शास्त्री ज़ी,

सादर,

मैं आपकी टिप्पणी के लिये बेहद बेताब रहता हूं क्यूंकि आपक़ी टिप्पणी बेहद ख़ुश करने वाली होती है और उसमें कुछ मार्गदर्शन भी छिपा रहता है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आपके मार्गदर्शन से मैं और बेहतर लिखूंगा।

Amit K. Sagar said...

beshak Umda!

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया अमित भाई

प्रकाश बादल said...

अरविंद भाई,

तुम्हारी टिप्पणी के लिये आभार! रही तुम्हारा ब्लॉग फोलौ करने की बात, वो तो मेरी मजबूरी है क्योंकी इस उम्र में तुम्हारी सोच काबिले तारीफ है, मैं अपने सभी प्रशंसकों से भी कहूंगा कि तुम्हारा ब्लौग ज़रूर देखें।

प्रकाश बादल said...

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

प्रकाश बादल said...

"तेरे लिये" द्वारा की गयी टिप्पणी का शुक्रिया।

Neelima said...

अच्छा लगा पढकर !

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया नीलिमा जी।

ARVI'nd said...

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया...आपके तजुर्बो और आपका आशीर्वादों की हम युवाओ को हमेशा जरुरत रहेगी।

शिवालों मस्जिदों को छोड़ता क्यों नहीं।

खुदा है तो रगों में दौड़ता क्यों नहीं।....ये ग़ज़ल मुझे इतना अच्छा लगा कि आजकल ये ग़ज़ल मै हमेशा गुनगुनाता रहता हूँ

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया अरविंद भाई,

एक बार पुन: शुक्रिया।

AJAY AMITABH SUMAN said...

जब भी पड़ता ग़ज़ल तुम्हारी
सब कुछ अच्छा लगता साहब
रोक नही सका कहने को
बादल अच्छा लिखता साहब

Anuja said...

I had already heared this gazel.But then it was not so good. its last share is very excelent.

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