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जब से तेरे प्यार में.......


जब से तेरे प्यार में पागल रहा हूं मैं।
शहर भर की तबसे हलचल रहा हूं मैं।

मेरी भाषा अब ये समंदर क्या जाने,
कि नदी में बहती हुई कल-कल रहा हूं मैं,

बर्फ हूं मेरे नाम से ठिठुरते हैं सभी,
पहाडों पर लेकिन बिछा कंबल रहा हूं मैं।

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।

होकर माला-माल शून्य कई लौट गए,
भूल गये कि उनका एक हासिल रहा हूं मैं।
डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाका ही अब चंबल रहा हूं मैं।
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25 comments:

manvinder bhimber said...

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें सब बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।
bahut khoobsurat

प्रकाश बादल said...

इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

समयचक्र - महेद्र मिश्रा said...

bahut badhiya gajal. badhai.

प्रकाश बादल said...

मंविन्दर जी,
धन्यवाद प्रोत्साहन के लिये। आपकी टिप्पणी मेरे लेखन को एक बेशकीमती पुरस्कार है।

प्रकाश बादल said...

भाई मिश्रा जी,
प्रोत्साहन के लिये आपका आभार, आशा है स्नेह बना रहेगा।

"अर्श" said...

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।

bhai bahot khub likha hai aapne,aapki gahari thinking aapko mukkamal shayar bana degi ... bahot umda .... jari rahe .. dhero sadhuwad...

पुनीत ओमर said...

बढ़िया गजल

प्रकाश बादल said...

अर्ष भाई,

जिस स्नेहिल भाव से आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा है, उससे मुझे कितनी खुशी महसूस हो रही है, उसका आप अनुमान नहीं लगा सकते, स्नेह के लिये शुक्रिया।

प्रकाश बादल said...

पुनीत भाई,

धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं से और लिखने की प्रेरणा मिलती है।

मीत said...

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
acchha hai bhai.

Mired Mirage said...

बढ़िया !
घुघूती बासूती

प्रकाश बादल said...

मेरे बडे भाई मेरे मीत,

आपकी प्रशंसा से मुझे बेहद खुशी हुई है। आपका स्नेह बना रहे तो लिखने में और धार आएगी।

रंजना said...

डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
एकदम सही कहा.


बहुत ही सुंदर रचना है.ऐसे ही लिखते रहें.शुभकामनाएं.

रंजना said...

बर्फ हूं मेरे नाम से ठिठुरते हैं सभी,
पहाडों पर लेकिन बिछा कंबल रहा हूं मैं।

यह शेर गजब की सुन्दरता लिए हुए है.

प्रकाश बादल said...

रंजना जी,
धन्यवाद जिस गहराई से आप ने मेरी गज़ल पर टिप्पणी की है उससे आपकी साहित्य के प्रति रुचि स्पषट झलकती है, आशा है कि भविष्य में भी आपका स्नेह बना रहेगा।

Ajay Srivastav , Jeevan Jyoti said...

very good
ajay

प्रकाश बादल said...

Thanks Ajai Ji, I am very happy for your interest in my writing.THanks a lot.

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, प्रकाश जी. आनन्द आया पढ़कर.

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया भाई समीर जी स्नेह और मार्गदर्शन बना रहे।

prakashbadal.blogspot.com

अनुपम अग्रवाल said...

आग आरियां,तूफान, बारिश, साजिशें सब बौनी हुई,
लहलहाता हुआ मगर जंगल रहा हूं मैं।
डाकू तो रह रहे सब संसद की शरण में,
बस नाम का ही अब चंबल रहा हूं मैं।
वाह प्रकाश जी आपने जंगल में प्रकाश फैला दिया
क्या झकझोरता हुआ व्यंग्य है

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया अग्रवाल जी,

मेरी लेखनी को और ताकत मिली।

डा गिरिराजशरण अग्रवाल said...

जबसे तेरे प्यार में पागल रहा हूं मैं।
शह्र-भर की तबसे ही हलचल रहा हूं मैं।
संभवतया पागलपन ही प्यार की पहली निशानी है। प्यार करो अपने समय से, अपने चारों ओर के वातावरण से, जीव-जंतुओं से और फिर अपने आप से। डा गिरिराजशरण अग्रवाल

प्रकाश बादल said...

शुक्रिया डॉ0 साहब,

टिप्पणी के लिये।

Anonymous said...

वाह प्रकाश जी क्या लिखा है।

मनीष कुमार,ठियोग्

Anuja said...

Gareebon ka hi ab chambal raha hun men.
All the best.

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