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इरादे जिस दिन से...........

इरादे जिस दिन से उड़ान पर हैं।
हजारों तीर देखिये कमान पर हैं।

लोग दे रहे हैं कानों में उँगलियाँ,
ये कैसे शब्द आपकी जुबां पर है।

मेरा सीना अब करेगा खंजरों से बगावत,
कुछ भरोसा सा इसके बयान पर हैं।

मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।

झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।

मजदूर,मवेशी, मछुआरे फिर मरे जाएंगे,
सावन देखिये आगया मचान पर है,

मक्कारों और चापलूसों से दो चार कैसे होगा,
तेरे पैर तो अभी से थकान पर है ।



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19 comments:

रंजन राजन said...

अच्छा लिखा है आपने। यूं ही लिखते रहें, सदियों तक...
इस दीपावली के मौके पर मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें। मेरी दुआ है कि अगली दीपावली तक आपकी गजल की किताब मेरे हाथों में हो।

Arun Aditya said...

लिखते रहें... दीपावली की शुभकामनाएं।

Premil said...

आपकी रचनायें पढीं. अत्यंत आनंद आया. मैंने आपके साईट को फोल्लो कर लिया है. उम्मीद है आपको भी हमारी कवितायें पसंद आएँगी और आप हमारे साईट को फोल्लो करेंगे.
धन्यवाद.

adil farsi said...

आप की रचनाऐ अच्छी हैं आप की सोच लाजवाब है

प्रकाश बादल said...

आदिल जी, आपका शुक्रिया। और अच्छा लिखूंगा।

ARVI'nd said...

आपकी गज़लें मुझे बहुत अच्छी लगी दस बार पढ़ चुका हु फिर भी पढ़ने को बेताब रहता हूँ

प्रकाश बादल said...

अरविन्द भाई,

आपकी प्रतिक्रिया ने मुझे जो प्रोत्साह्नन् दिया है, उससे मैं बेहद उत्साहित हुआ हूं। भविष्य में भी आपकी प्रतिक्रिया मिलती रहेगी, तो आभारी रहुंगा।

Surbhi said...

बहुत खूब आपकी ग़ज़ल पढ़कर कार्ल मार्क्स की याद आ गयी दास कैपिटल की कुछ बातें आज के समाज में कितनी सटीक है. कविता तो बहुत पढ़ी इस विषय पर ग़ज़ल पहली बार. आपकी शुभ कामनाओ के लिए आभारी हूँ! लिखती तो अपने स्कूल के दिनों से हूँ पर प्रकाशित करने या ब्लॉग पर डालने का समय नहीं मिल पता पढाई के चलते!

डा गिरिराजशरण अग्रवाल said...

आपकी ग़ज़लों को पढा। यदि कोई सुझाव देता है तो उनकी गम्भीरता के आधार पर उन्हें अवश्य स्वीकार कीजिए। मेरा भी एक सुझाव है। आप हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित ग़ज़ल और उसका व्याकरण अवश्य पढिए।
फ़ोन 09368141411

प्रकाश बादल said...

आदरणीय अग्रवाल जी,
आपका सुझाव सर आंखों पर। व्याकरण में रहना मुझे पसंद नहीँ हैं, जब मैं किसी नियम में बंध कर लिखता हूं तो मेरे बहुत सारे भाव मुझे आत्म्हत्या की धमकी दैते हैं, मैं व्याकरण से अधिक अपने भवों के ज़िंदा रहने को प्राथमिकता देता हूं, फिर भी आप के सुझाव को किसी हद तक मानने का प्रयास करूंगा.

सादर

प्रकाश बादल

प्रकाश बादल said...

सुरभि जी,

आपने मेरी गज़लों को सराहा और आपको अच्छी लगी मुझे बहुत खुशी हुई। भविष्य मेँ और भी अच्छा लिखने का प्रयास रहेगा।

शुक्रिया

Shastri said...

सशक्त अभिव्यक्ति है!

आज कई रचनाओं को दुबारा पढा एवं बहुत अच्छा लगा.

रचनात्मकता को जीवंत रखो, बहुत आगे जाओगे.

प्रकाश बादल said...

आदरणीय शास्त्री जी,
सादर नमन,


आपसे एक बार फिर मिलकर अच्छा लग रहा है,
आपके प्रोत्साहन से बहुत ऊर्जा मिलती है। आशा है स्नेह बनाए रखेंगे। आपसे बहुत कुछ सीखना है। सादर

प्रकाश बादल

रंजना said...

वाह ! बहुत बहुत सुंदर,भावपूर्ण पंक्तिया है.बहुत सुंदर लिखतें हैं आप.ऐसे ही लिखते रहें,मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं.

प्रकाश बादल said...

रंजना जी,

एक बार फिर आपका धन्यवाद। भविष्य मेँ भी आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। बहुत से लोगों ने मेरी लेखनी को खारिज करने का प्रयास करना चाहा है, उसे आप जैसे ही प्रशंसकों ने ही बचा रखा है।

अनुपम अग्रवाल said...

मजदूरों के तालू पर कल फिर दनदनाएगा,
सूरज जो आज शाम की ढलान पर है।
झुग्गियों की बेबसी तक भी क्या पहुंचेगी,
ये बहस जो गीता और कुरान पर है।
ये तो संघर्ष की ज़िंदगी के चिन्ह हैं.
बहुत अच्छा लिखा है

प्रकाश बादल said...

आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
शुक्रिया।

प्रकाश बादल said...

आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
शुक्रिया।

प्रकाश बादल said...

आपके स्नेह ने मुझे उल्लास से भर दिया है
शुक्रिया।

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