'सर्जक' की साहित्यिक संगोष्ठी पर एक विस्तृत रिपोर्ट

हिमाचल प्रदेश की राजधानी से 32 किलोमीटर दूर ठियोग कस्बे में साहित्यिक और सामाजिक चेतना की संस्था ‘सर्जक’ अरसे बाद सक्रिय हुई है। 10 दिसम्बर 2011 को संस्था द्वारा आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी इस का जीता जागता प्रमाण है। दो सत्रों की इस गोष्ठी में प्रथम सत्र में “समकालीन सहित्य और हिमाचली लेखक” विषय पर चर्चा हुई और द्वितीय सत्र में “कवि गोष्ठी का आयोजन था। गोष्ठी ने अनेक चुनौतियाँ के बावजूद भी बहुत सफल रही।‘सर्जक’ का उत्साह देखते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार और पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ0 सत्यपाल सहगल ने तो ठियोग को हिमाचल के संदर्भ में साहित्यिक राजधानी घोषित कर दिया। यद्यपि बहुत से लोग हवाओं और मौसमों के कान भरते नज़र आए, लेकिन...

ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच

असिक्नी पत्रिका में प्रकाशित गज़ल भाई मनु, अरुण डोगरा और अर्श भाई के लिए थी, मित्र का कोई और ही अर्थ न निकाल लिया जाए इस लिए सूरत साफ कर दी जाए तो अच्छा।ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच। तूने ही पटरियाँ बराबर न की, थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच। न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा, कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच, सूरज को कब रोक पाईं सरहदें, है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे ...

रास नहीं आता अतुल महेश्वरी का इस तरह जाना...............

                                              'अमर उजाला 'के प्रबन्ध निदेशक अतुल महेश्वरी के जाने से संपूर्ण भारतीय मीडिया जगत को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचा है। हिमाचल प्रदेश के हज़ारों मीडिया कर्मी सहित हिमाचल का सारा मीडिया जगत उनके अकस्मात जाने की खबर से स्तब्ध है। शोक का जो सन्नाटा इस दुखद घटना से हिमाचल के पहाड़ों ने महसूस किया है वो संभवतय: पहली बार है। इस दुःख का एक मात्र कारण ये है कि अतुल महेश्वरी ने हिमाचल प्रदेश जैसे...

साहित्यिक गतिविधियों से सराबोर रहा वर्ष 2010

                          वर्ष 2010 ढलते-ढलते हिमाचल में साहित्यिक माहौल को गर्म कर गया है। एक ओर वरिष्ठ साहित्यकार युवा रचनाकारों की पीठ थपथपाते नज़र आए तो दूसरी ओर युवा लेखकों के प्रोत्साहन के लिए कई आयोजन हुए। जहाँ अनेक पत्र-पत्रिकाएं इसी वर्ष प्रकाशित हुईं वहीं हिमाचल के बाहर से प्रकाशित होने वाली अनेक साहित्यिक पत्रिकाओ ने हिमाचल में हो रहे सृजनात्मक लेखन का कड़ा नोटिस लेते हुए हिमाचल विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय ले लिया। ग़ैर-सरकारी साहित्यिक संस्थाओं की जो सक्रियता इस वर्ष नज़र आई वो इससे पहले कभी देखने...

हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'असिक्नी' आपकी नज़र

तकरीबन तीन साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद असिक्नी का दूसरा अंक प्रकाशित हो गया है. *असिक्नी * साहित्य एवम विचार की पत्रिका* है जो कि सुदूर हिमालय के सीमांत अहिन्दी प्रदेशों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य को लोकप्रिय बनाने तथा इस क्षेत्र की आवाज़ को, यहाँ के सपनों और *संकटों* को शेष दुनिया तक पहुँचाने के उद्देश्य से रिंचेन ज़ङ्पो साहित्यिक -साँस्कृतिक सभा केलंग अनियतकलीन प्रकाशित करवाती है. सभा के संस्थापक अध्यक्ष श्री त्सेरिंग दोर्जे हैं तथा पत्रिका का सम्पादन कुल्लू के युवा आलोचक निरंजन देव शर्मा कर रहें हैं। अंक पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें170 पृष्ठ की पत्रिका का गैटअप सुन्दर है, छपाई भी अच्छी है। मुख पृष्ठ पर तिब्बती थंका शैली में बनी बौद्ध देवी तारा की पेंटिंग है. भीतर के मुख्य आकर्षण हैं :स्पिति के प्रथम आधुनिक हिन्दी कवि मोहन सिंह की कविता हिमाचल में समकालीन साहित्यिक परिदृष्य पर कृष्ण...

उसका चेहरा

नज़्म,कविता,शेर, ग़ज़ल उसका चेहरा।लहलहाती एक फसल उसका चेहरा।वो मुझको  तो अपना सा ही लगता है,चाहे असल हो या नकल उसका चेहरा।हर दिल को मुमताज़ कर दे पल भर में, शहाजहाँ का  ताजमहल  उसका चेहरा।घड़ी भर को ही तो हम ठहरे थे,समय जैसे गया निकल उसका चेहरा। दरिया में  कंकर जैसे कोई मार गया,गौर से देखो ऐसी हलचल उसका चेहरा। मंहगाई में ग़रीबों से सब धंसते जाएं,नहीं है वैसा, पर है दलदल उसका चेहरा, फुटपाथ पर कई रोज़ के भूखे सा मैं,इसी भूख में आटा- चावल उसका चेहरा। पल भर में है रविवार की छुट्टी सा और,पल में होता सोम-मंगल उसका चेहरा। मंहगाई भत्तों की आस में बाबू से सब,सियासी झाँसे सा चपल उसका चेहरा। रस्ता भूलूँ उसमें, या फिर लुट जाऊँ मैं,मुझको लगता है इक चंबल उसका चेहरा।...

बिलासपुर में नन्हें फूल बिखेर रहे कविता की ख़ुशबू

बच्चों को कविता लेखन के प्रोत्साहन हेतु एक कार्यशाला का आयोजन50 बच्चे ले रहे भागबेटियों की प्रतिभागिता अधिकइन दिनों हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में ज़िला भाषाधिकारी डॉ0 अनिता के आग्रह पर मैं एक वर्कशॉप में हिस्सा लेने आया हूँ। वर्कशॉप में आने का निमंत्रण इसी लिए स्वीकार किया क्योंकि मुझे जवाहर नवोदय विद्यालय में स्कूली बच्चों के साथ समय बिताना था और इन बच्चों को Hopes and challenges of youth विषय पर केंद्रित कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित करना था। डॉ0 अनिता एक जागरूक महिला अधिकारी तो हैं ही साथ ही उनका आग्रह टालना मेरे लिए इसलिये भी मुश्किल था क्योंकि उनका मैं बहुत आदर करता हूँ। इसके साथ-साथ बिलासपुर आने की लालसा इसलिए भी रहती है कि मेरे परम मित्र...
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