'सर्जक' की साहित्यिक संगोष्ठी पर एक विस्तृत रिपोर्ट

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हिमाचल प्रदेश की राजधानी से 32 किलोमीटर दूर ठियोग कस्बे में साहित्यिक और सामाजिक चेतना की संस्था ‘सर्जक’ अरसे बाद सक्रिय हुई है। 10 दिसम्बर 2011 को संस्था द्वारा आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी इस का जीता जागता प्रमाण है। दो सत्रों की इस गोष्ठी में प्रथम सत्र में “समकालीन सहित्य और हिमाचली लेखक” विषय पर चर्चा हुई और द्वितीय सत्र में “कवि गोष्ठी का आयोजन था। गोष्ठी ने अनेक चुनौतियाँ के बावजूद भी बहुत सफल रही।‘सर्जक’ का उत्साह देखते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार और पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ0 सत्यपाल सहगल ने तो ठियोग को हिमाचल के संदर्भ में साहित्यिक राजधानी घोषित कर दिया। यद्यपि बहुत से लोग हवाओं और मौसमों के कान भरते नज़र आए, लेकिन किसी की एक भी न चली। ‘सर्जक’ के इरादों और मंशा के आगे सब कुछ सामान्य नज़र आने लगा। जब साहित्यकारों का हुजूम गोष्ठी में उमड़ा तो यह तो स्पष्ट हो ही गई कि ‘सर्जक’ की गोष्ठी कोई ‘गाजा-बाजा’ नहीं बल्कि एक ऐसा संगीत है, जिससे साहित्यिक गलियारों में ऐसी थिरकन पैदा होती है, जो हर लिखने वाले के भीतर एक छटपटाहट पैदा करती है, जैसी किसी सुरमई संगीत सुनकर एक सुधि श्रोता को होती है और हर कोई सर्जक हो उठता हैं।
इस साहित्यिक गोष्ठी में प्रथम सत्र पर चर्चा के लिए डॉ0 निरंजन देव शर्मा और नवनीत शर्मा को चुना गया था। आते-आते नवनीत तो नहीं आए लेकिन उनका “इमोशनल अत्याचार” करता हुआ मेल ही ‘सर्जक’ तक पहुँच पाया। बहुत से अपेक्षित लेखक ठियोग नहीं पहुँच पाए। राजकुमार राकेश भी आयोजन में नहीं पहुँचे और न ही जनपथ के स्थाई संपादक अनंत कुमार सिंह। इसके बावजूद भी गोष्ठी खूब जमी। डॉ0 निरंजन देव का पर्चा विषय पर केंद्रित नहीं हो पाया। समकालीन संदर्भ में निरंजन केवल उन्हीं हिमाचली लेखकों के नाम उल्लिखित कर पाए जो उनके अधिक करीब हैं। कुलदीप शर्मा, विक्रम मुसाफिर, जीतेंद्र शर्मा और कुछ और समकालीन कवियों के तो नाम भी उनके पर्चे से ग़ायब नज़र आए। इसके बावजूद जिन कवियों की चर्चा पर्चे में हुई, उनकी रचनाओं का तो उल्लेख तक पर्चे में कहीं नज़र नहीं आया। अधिकतर लेखकों का मानना था कि समकालीन लेखन पर चर्चा होनी चाहिए थी जो नहीं हो सकी। ‘सेतु’ पत्रिका के संपादक डॉ0 देवेन्द्र गुप्ता ने भी हिमाचली साहित्य पर एक पर्चा पढ़ा लेकिन वह भी चर्चा के विषय से अलग-थलग नज़र आया, लेकिन हिमाचल में साहित्यिक गुटबाजी से डॉ0 गुप्ता भी काफी दुखी नज़र आए। बहुत से लेखकों ने चर्चा में भाग लिया तो सही लेकिन मुद्दे की बात पर चर्चा वहाँ से भी नहीं हो पाई। राजेंद्र राजन ने कहा कि लेखक होने के लिए उसकी सारी रचनाएँ उत्कृष्ट होना ज़रूरी नहीं है, उन्होंने सुरेश सेन ‘निशांत’ और एस0 आर0 हरनोट को हिमाचली लेखन की धरोहर बताया। उनके अनुसार अच्छी रचानाएं रुक नहीं सकतीं वो आगे बढ़कर रहती हैं। राजन ने इस बात पर दुख जताया कि हिमाचल की रचनाशीलता की जब बात आती है तो मात्र कुछ ही लेखकों की चर्चा होती है, जो दुखद है। हिमाचल में हो रहे लेखन की यदि बात हो तो सभी लेखकों पर चर्चा होनी चाहिए।

अजेय ने डॉ0 देवेंद्र गुप्ता के असली और नकली हिन्दी के विचार पर जब स्पष्टीकरण माँगा तो डॉ0 गुप्ता झट से यह कहते हुए स्टेज पर आए “ यस आई कैन” ! डॉ0 गुप्ता ने हिन्दी अनुवाद में हो रहे प्रयोग को नकली हिन्दी की संज्ञा दी। उन्होंने बताया की अच्छा अनुवाद ही असली हिन्दी है । डॉ0 देवेन्द्र गुप्ता हिमाचल में हो रहे हिन्दी लेखन से आश्वस्त नज़र आए। जब देवेन्द्र गुप्ता के असली हिन्दी और नकली हिन्दी के विचार पर चर्चा हुई तो चुटकी लेते हुए सुदर्शन वशिष्ठ नें कहा कि जब असली हिन्दी और नकली हिन्दी की बात हो सकती है, इसके साथ असली लेखक और नकली लेखक पर भी बात होनी चाहिए। चर्चा में भाग लेते हुए ‘सर्जक’ के सदस्य मुंशी राम शर्मा ने बताया कि हिमाचली लेखन राष्ट्रीय स्तर पर भी आ रहा है ये संतोषजनक है। उन्होंने राष्टीय फलक पर हिमाचली लेखक के आने से खुशी ज़ाहिर की। है। मुंशी राम शर्मा के अनुसार चर्चा में हाल ही में प्रकाशित हिमाचली विषेशांकों में संकलित लेखकों की रचनाओं पर बात होनी चाहिए थी, जो नहीं हो पाईँ। वरिष्ठ कहानीकार बद्री सिंह भाटिया ने बताया कि अनेक हिमाचल से बाहरी पत्रिकाओं ने पहले भी हिमाचली लेखकों को प्रकाशित किया है। ऐसे प्रयासों से ही हिमाचली लेखन काफी उन्नति कर रहा है और हिमाचली लेखकों में लेखन के प्रति काफी उत्साह भी है। भाटिया के अनुसार हिमाचल का लेखक उसी प्रकार छपे जिस प्रकार ‘आकंठ’ और ‘जनपथ’ में छपा है, न कि वही लेखक छपे जो प्रायोजित हों। वरिष्ठ साहित्यकार तेज राम शर्मा ने हाल ही में प्रकाशित हिमाचली विषेशांको के प्रकाशन पर संपादकों का आभार जताया। तेज राम ने युवा लेखक से आग्रह किया कि लिखने के साथ दूसरे लेखकों को भी पढ़ना चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर देते हुए कहा कि लेखन सतत अभ्यास से निखरता है। उनके अनुसार लेखक बेशक एक ही विधा में लिखता हो, लेकिन उसे साहित्य की हर एक विधा को पढ़ना चाहिए। ठियोग महाविद्यालय में हिन्दी की प्रवक्ता कामना महेंद्रू ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अच्छा सहित्य वो है जो पाठक के दिल को छू जाए। वे अपने वक्तव्य के दौरान भावुक हो गईं। उन्होंने ‘सेतु’ पत्रिका में प्रकाशित कुछ कहानियों का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘सेतु’ के ‘कथा चौबीसी’ में प्रकाशित कहानियाँ यथार्थ के बहुत करीब और आंदोलित करने वाली हैं। उनके अनुसार हिन्दी को हम खुद ही पतन की ओर ले जा रहे हैं। महेंद्रू ने आगे बताया कि हिन्दी के आयोजनों में भीड़ जुटाना बहुत मुशिकल हो जाता है। उन्होंने हिन्दी के अस्तित्व पर खतरे के बादलों की आशंका जताई।
डॉ0 सत्य नारायण स्नेही ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि हमें पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो कर साहित्य नहीं पढ़ना चाहिए। रचना को रचना के आधार पर पढ़ना चाहिए न कि ‘लेखक कौन है’ के आधर पर! उन्होंने बताया कि कविता का अनुवाद करना पाप है क्योंकि अनुदित कविताएँ उस भाषा की खुश्बू को खो देती हैं, जिसमें वो लिखी गई हों। डॉ0 स्नेही के अनुसार साहित्य कभी पुराना नहीं होता बल्कि साहित्य अपने समय का दर्पण होता है। कृष्ण चन्द्र महादेविया ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा के भाषाएँ मरती नहीं है। उन्होंने हिमाचल में लिखे जा रहे निबंधों और लघुकथा विधाओं पर भी नज़र डाले जाने का अग्रह किया। उन्होंने बयाया कि पत्रिकाएँ छोटी-बड़ी नहीं होती। प्रथम सत्र की अध्यक्षता कर रहे पंजाब विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ0 सत्यपाल सहगल ने बताया कि ‘सर्जक’ की साहित्यिक सक्रियता प्रशंसनीय है। उन्होंने ‘सर्जक’ गोष्ठी में उपस्थित साहित्यकारों की अधिकता को देखते हुए बताया कि यह हिमाचल के साहित्यिक परिदृष्य में परिवर्तन का सूचक है और यह परिवर्तन आगे बढ़ रहा है। राजकीय हिन्दी महाविद्याल की प्राध्यापिका श्रीमति देवेन्द्रा महेंद्रु के वक्तव्य का उत्तर देते हुए डॉ0 सहगल ने बताया कि हिन्दी मर नहीं रही बल्कि हिन्दी को मारने के प्रयास हम स्वय़ं कर रहे हैं। हिमाचल में नज़र आ रहे साहित्यिक बदलाव की ओर इशारा करते हुए डॉ0 सहगल का कहना था कि ये बदलाव युवा लेखकों के माध्यम से हो रहा है। डो सहगल के अनुसार हिमाचल पर केंद्रित अंक निकलने से अधिक फर्क नहीं पड़ने वाला, बल्कि लेखकों को उत्कृष्ट रचना देनी होगी, तभी बदलाव आएगा। डॉ0 सहगल ने हिमाचली लेखकों से आग्रह किया कि हिन्दी में अधिक अच्छा और प्रभावशाली लिखने के लिए हिमाचल से बाहर के राज्यों में हो रहे हिन्दी लेखन पर भी नज़र डालनी होगी, तभी हिमाचल में हो रहे हिन्दी लेखन का सही मूल्याँकन हो सकेगा।
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गोष्ठी में भाग लेते हुए लेखक
हिन्दीवादी होने से अधिक लेखक स्वतंत्रतावादी होना चाहिए, सत्यपाल ने उदाहारण देते हुई कहा है कि मशहूर बीट ग़ायक जॉन लीनेन का गीत “ देयर इज़ नो कंट्री” सारे जहाँ में इसलिए फैल गया कि वो स्वतंत्र भावना से लिखा गया है। हिमाचल की सृजनात्मकता को लेकर डॉ0 सहगल संतुष्ट नज़र आए। डॉ0 सहगल ने स्पष्ट किया कि हिमाचल में आलोचना के पक्ष में अधिक काम नहीं हो पाया है, और हिमाचल के एक मात्र विश्वविद्याल ने भी इस संबंध में निराश ही किया है। लेकिन सत्यपाल सहगल ने हिमाचल मे पढ़ने की रुचि को भी महसूस किया और बताया कि हिमाचल में अच्छे पाठक हैं ।
साहित्य को लेकर हिमाचल प्रदेश में छपने वाली पत्रिकाओ को भी उन्होंने सराहा। हिमाचल में ‘सर्जक’ जैसी सहित्यिक संस्था का अभाव महसूस किया। उन्होंने ये सुझाव भी दिया कि हिमाचल के लेखकों को अन्य राज्य के लेखकों, विशेष तौर पर पड़ौसी राज्य के लेखकों से मेल- जोल बढ़ाने को कहा। डॉ0 सहगल के अनुसार हिमाचल में रचे जा रहे साहित्य की जब बात हो तो हिमाचल में लिखी जा रही ग़ज़ल का भी नोटिस लिया जाना चाहिए। ‘आकंठ’ के संपादन के लिए उन्होंने सुरेश सेन 'निशांत' निशांत के सम्पादन की तारीफ़ करते हुए उसे साहसपूर्‍ण बताया, और कहा कि एक-आध निर्णय से असहमति हो सकती है।   डॉ0 सहगल ने अपने संबोधन में बताया कि हिमाचल के लेखक सक्रिय हैं और भविष्य में अनेक आयाम छूने की और अग्रसर है। सत्यपाल ने बताया कि हिन्दी साहित्य को इंटरनैट का लाभ भी उठाना चाहिए और हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं की कविताएँ भी पढ़नी चाहिए।
इसके साथ की घोषणा हुई कि लेखकों के लिए बना भोजन उन्हें इसलिए नहीं मिलेगा कि कॉलेज का हॉल खाली करना है। भूखे पेट ही अगले सत्र में कविताएँ पढ़ी गईं और अधिकतर लेखक भूखे पेट ही लौट गए। बहुत सारा खाना बच गया।

दूसरे सत्र में “कवि ग़ोष्ठी” में पहली कविता डॉ0 सत्य नारायण स्नेही ने पढ़ी।
इसके बाद बिलासपुर से आए अरुण डोगरा ‘रीतु’ ने अपनी कविता ‘पिता-पिता होता है’, पढ़ी।
ओम भारद्वाज ने अपनी कविता ‘बचा रखना चाहते हैं पृथ्वी’ पढ़ी। उनकी पंक्तियों की धार देखिए
  आदमी पृथ्वी के गर्भ में
रखता रहा दाने सुरक्षित
काल के काले बादलों से बचाकर,
क्योंकि वह जानता है कि
बारूद से नहीं भरता पेट

सुन्दरनगर से आए कृष्ण चंद्र महादेविया ने ‘खटमल’ कविता पढ़ी। व्यंग्य करती हुई कविता में महादेविया ने कहा कि खटमल अक्सर सोए हुओ को ही क़ाटता है।
रत्न चन्द ‘निर्झर’ ने अपनी पुरानी प्रतिनिधि कविता ‘खिंद’ पढ़ी।
माहौल में चुस्ती तब आई जब ऊना से आए प्रसिद्ध कवि कुलदीप शर्मा ने जब अपनी कविता ‘सिक्योरिटी गार्ड’ पढ़ी। उनकी इस गंभीर कविता से यह तो बखूबी साबित हो ही गया कि उन्हें प्रथम सत्र के पर्चे से बाहर रखना पर्चे का अधूरा होना ही है, खासकर उस समय जब हिमाचली लेखक को समकालीन सहित्य से जोड़कर देखा जा रहा हो। कुलदीप की कविता श्रोताओं को हिप्नोटाईज़ कर गई, कुछ पंक्तियाँ देखिए:
गुज़ार दो मेरा सारा सामान पूरा वजूद
इस स्कैनिंग मशीन से
देखकर बताना कितने फफोले हैं
                                        मेरी चेतना के जिस्म पर
                                        मेरे रक्त में कितना बचा है जनून
                                       ठसठसा कर भरा हुआ अगर फट ही पड़ूँ मैं
                                        तो कितना नुकसान होगा

युवा और चर्चित ग़ज़लकार शाहिद अँजुम ने अपनी ग़ज़लों से ठियोग के सर्द माहौल को गर्म कर दिया। शाहिद की ये पंक्तियां देखिए:
" एक नदी पलकों पे ठहरी छोड़ कर।
आ गए हम घर की दहरी छोड़कर॥
आप जब इंसाफ कर सकते नहीं,
क्यों नहीं जाते कचहरी छोड़ कर।

जहाँ से अम्न के पंछी उड़ान भरते हैं।
उसी दरख़्त के पत्ते लगान भरते हैं।
मैं जब चराग जलाता हूँ रोशनी के लिए,
अंधेरे तेज़ हवाओं के कान भरते हैं

‘सर्जक’ के संचालक एवम युवा कवि मोहन साहिल ने कारों के माध्यम से आधुनिक परिस्थियों पर व्यंग्य करती एक कविता पढ़ी। “ कार शास्त्र” शीर्षक से पढ़ी गई इस कविता की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं:
जन्म से कोई भी कार
नहीं होती है घमंडी/ अहमक/ फिसड्डी
यहाँ तक कि शोरूम में रह्ती हैं
शालीन, सभ्य और अपनापन लिए
सड़क पर आते ही बदल जाता है इनका लहज़ा
मसलन जिस कार में होता है मंत्री या नेता
वो बहुत त्योड़ियाँ चढ़ाए रहती है।
किसी को भी नहीं देखना चाहती है यह कार
                                                             सड़क पर चट्टान आ जाए तो
                                                      यह कार गुर्राने लग जाती है।
                                                              ज़िला के अफसर की कार तो
                                                              और भी रूखा व्यवहार करती है
                                                              रहती है हमेशा नेता की कार के पीछे
                                                              उसका ही हुक्म मानती है
                                                              वही खाती पीती है
                                                              या उससे भी बेहतर।

 
लाहुल से आये चर्चित युवा कवि
अजेय ने ‘मैं वो डर कह देना चाहता था” शीर्षक से कविता पढ़ी।
कि वो बात कहने के लिए
एक भाषा तलाश रहा हूँ
कि एक दिन वो भाषा तलाश लूँगा।
कि वो बात कहने के लिए
एक आवाज़ तलाश रहा हूँ
कि एक दिन वो आवाज़ भी तलाश लूँगा।
कि वो बात सुनने के लिए
वो कान तलाश रहा हूँ

के एक दिन वो कान भी तलाश लूँगा

सुन्दरनगर से आए युवा एव चर्चित कवि सुरेश सेन ‘निशांत’ ने “ कुछ थे जो कवि थे” शीर्षक से एक कविता पढ़ी, उनकी ये पंक्तियाँ देखिए:
कुछ थे जो कवि थे
उनके निजी जीवन में थी
कोई उथल पुथल भी नहीं
सिवा इसके कि वो कवि थे।
वे कवि थे और चाहते थे
कि कुछ ऐसा कहें और लिखें
कि समाज बदल जाए
बदल जाए देश की सभी प्रदूषित नदियों का रंग।
पाँवटा से आए कवि याद्वेंद्र शर्मा ने की कविता “दुनिया खूबसूरत है” की ये पंक्तियाँ देखिए:
गन्दी बस्तियों के लोग
जी भर के जीते हैं,
पॉश कॉलोनियों की तंगियां वे जाने
जो वहां रहते हैं।
हम मुरझाए पौधों को पानी देते हैं.....
......मुझे ठगने वाला कम्वख़्त,
फिर मिला एक दिन सड़क पर
इतना घनिष्ठ कि मैं फिर ठगा गया।
कवि और ग़ज़लकार अश्वनी रमेश ने गज़ल और कविता दोनों का पाठ किया:
उनके शहर से चले जब हम जाएँगे।
कैसे कहें कि लौटकर कब आएँगे।
हम तो फक़ीरों सी जीए हैं सारी खुशी,
उन्हें यहाँ की दे खुशी सब जाएँगे
इसके अतिरिक्त रमेश ने “ अहसास जो जीवित रखता है”, शीर्षक से कविता पढ़ी।
वरिष्ठ साहित्यकार और कहानीकार बद्री सिंह भाटिया ने ‘स्वीकारोक्ति’ शीर्षक से कविता पढ़ी ।
  ‘सर्जक’ के अध्यक्ष मधुकर भारती भी नई कविता के साथ नज़र आए। उनकी कविता की ये पंक्तियाँ देखिए:
“रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर
अपनी कमीज़ का कॉलर ऊँचा करते
आ रहा है एक नेपाली युवक
कि सजा- धजा दिखना चाहिए आम आदमी
हम किसी खेत की मूलियाँ नहीं
कि हमारी बहसों से ठीक हो व्यवस्था
अन्ना हज़ारे की ऊर्जा हमसे नहीं है
येचुरी हमसे प्रेरित नहीं है
आडवाणी का रथ हमने नहीं सजाया है
इरोम को हमारे अस्तित्व को पता नहीं है
नेपाली किशोर को क्या पता कि उसे
कितनी गहराई से पढ़ा है हमने
माऊँटएवरैस्ट से हिन्दमहासागर तक
अरुणाचल पर्वत से अरबसागर तक
विस्तार है हमारी विचार भूमि का
 प्रसिद्ध कहानीकार और कवियत्री रेखा ने अपनी कविता ‘गंगा’ पढ़ी। ये पंक्तियाँ देखिए:
गंगा मैं तुझमें उतर रही हूँ
अपने बेहिसाब पापों के साथ
मैं अपना गोपन अगोपन
सब सौंप रही हूँ तुम्हें निश्छल
गंगा मैं तुझमें उतर रही हूँ
अपने तमाम पापों के साथ
लेकिन अंतिम बार नहीं
तेज राम शर्मा ने “ नहाए रौशनी में शीर्षक से कविता पढ़ी, कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार है:
इंतजार में हूँ
कि समय की पकड़
ढीली हो तो
आकाश की ओर उठी आँखें
नहाए रौशनी में
 
 
मंच का संचालन कर रहे युवा कवि आत्मा राम रंजन ने “पृथ्वी पर लेटना” शीर्षक से कविता के अंश पढ़े, रंजन कहते हैं:
“पृथ्वी पर लेटना पृथ्वी पर भेटना भी है” ।
डॉ0 सत्यपाल सहगल ने अपनी कविता “ कोई एक पेड़ चुन लूँ” पढ़ी, उनकी ये पंक्तियाँ देखें:
कोई एक पेड़ चुन लूँ मैंने सोचा था
क्या चुन सकता हूँ
किसी ओस की कोई एक बूँद
यह भी सोचा था
दुनिया जबकि सारी चुनना चाहता था
काले से शुरू कर
शरीर सारे समुद्र सारे
सारे स्वभाव ।
सारे फल
सारे दिन
सारी नदियाँ
पहाड़, घाटी की शांति

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार अवतार एनगिल ने अपनी कविता ”बाघ और मेमना” पढ़ी, उनकी कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार थी:
बाघ ने मेमने से कहा
पहले मेरे अगले पंजे बाँध लो
फिर मीडिया वालों को फोन लगाओ
आज हम तुम साथ-साथ फोटो खिंचवाएँगे
और वे उसे हर चैनल पर दिखाएँगे
उन्होंने दूसरी कविता ‘नन्हा बाघ’ भी पढ़ी।
विगत दिनों अनेक साहित्यकारों के आकस्मिक निधन से हुई क्षति से उपस्थित साह्त्यप्रेमियों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए, विशेष तौर पर श्रीलाल शुक्ल, रतन सिंह ‘हिमेश’, कांता शर्मा ( ज़ुंगा, शिमला), टी0डी0एस0 ’आलोक’ रूप शर्मा ‘निर्दोष’ के निधन पर शोक जताया और दिवंगत आत्माओं के परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गई।
इस प्रकार सर्जक की कवि गोष्ठी सम्पन्न हुई और सभी साहित्यकार कोई भूखे ही और कोई दोपहर में बना खाना खा कर अपने-अपने गंतव्यों को विसर्जित हुए।

ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच

असिक्नी पत्रिका में प्रकाशित गज़ल भाई मनु, अरुण डोगरा और अर्श भाई के लिए थी, मित्र का कोई और ही अर्थ न निकाल लिया जाए इस लिए सूरत साफ कर दी जाए तो अच्छा।



ये कैसी घृणा की नदी तेरे मेरे बीच,
है एक पुल की कमी तेरे मेरे बीच।


तूने ही पटरियाँ बराबर न की,
थी प्यार की तो रेल चली तेरे मेरे बीच।


न मुझे सोने दिया, खुद भी जग रहा,
कुछ यूँ रातें कटीं तेरे मेरे बीच,


सूरज को कब रोक पाईं सरहदें,
है बराबर सी धूप बँटी तेरे मेरे बीच

रास नहीं आता अतुल महेश्वरी का इस तरह जाना...............

jaata nahin koi
                                              'अमर उजाला 'के प्रबन्ध निदेशक अतुल महेश्वरी के जाने से संपूर्ण भारतीय मीडिया जगत को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचा है। हिमाचल प्रदेश के हज़ारों मीडिया कर्मी सहित हिमाचल का सारा मीडिया जगत उनके अकस्मात जाने की खबर से स्तब्ध है। शोक का जो सन्नाटा इस दुखद घटना से हिमाचल के पहाड़ों ने महसूस किया है वो संभवतय: पहली बार है। इस दुःख का एक मात्र कारण ये है कि अतुल महेश्वरी ने हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य में उस समय पत्रकारिता का डंका बजाया, जब हिमाचल प्रदेश में एक दो अखबार ही नज़र आते थे । हिमाचल के पहाड़ों का दर्द पहाडों की ऊँची चोटियाँ पार करके राजधानी और सियासतदानों तक कम ही पहुँचता था। मैंने हिमाचल प्रदेश में उस समय पत्रकारिता की थी, जब अखबारों में काम करने के लिए न तो पर्याप्त आय के साधन थे न ही इतना स्थान हिमाचल प्रदेश को मिलता था। कुछ अखबार हिमाचल में आए भी, लेकिन दुर्गम पहाड़ों की पगड़डियों को पार न कर पाए। इसी प्रकार जब हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश में अखबार निकालना एक बड़ी चुनौती लग रहा था तो दूसरी ओर हिमाचल संस्करण निकालने की सोच को बहुत कम लोगों ने गंभीरता से लिया। हिमाचल में पैसा और प्रसिद्धि प्राप्ति के लिए कई अख़बारों ने हिमाचल से निकलने की घोषणाएँ की और बहुत से अखबर निकल भी आए लेकिन आर्थिक संकट, खराब संचार व्यवस्था और हिमाचल में पत्रकारिता की संभावनाओं के प्रति सही दृष्टिकोण का अभाव इन अखबारों की कमज़ोरी साबित हुआ। बहुत से समचार पत्र जो बड़ा जोश दिखा कर हिमाचली पहाड़ों को चुटकी में लाँघने और हिमाचल के दुःख दर्द को साझा करने के नारों के साथ आए थे वो कुछ ही कदम चलकर हाँफने लगे। 'अमर उजाला' का हिमाचल में अवतरण ऐसे ही समय में हुआ था।
Page1shradhanjli                                                  अतुल पहाड़ के दर्द को साझा करने की मंशा से हिमाचल में समाचार पत्र लेकर आए थे जो आज हिमाचल में 'अमर उजाला' की प्रसिद्धि से साबित होता है। पत्रकारिता का अनुभव तो उन्हें अच्छा खासा था ही, इसी के चलते हिमाचल प्रदेश में अतुल की रणनीति और दूरदर्शिता ने 'अमर उजाला' की प्रसिद्धि का झंडा गाड़ दिया।  कठिनाईयों से गुज़रने के बाद भी अतुल की टीम ने हिमाचल प्रदेश में सफलता का जो परचम लहराया उसे देखकर हिमाचल का मीडिया जगत सतब्ध रह गया। इसी के फलस्वरूप अतुल का इस कदर अचानक चला जाना हिमाचल के लिए भी उतना ही पीड़ादायक है जितना भारत के अन्य स्थानों के लिए। आज हिमाचल प्रदेश में 'अमर उजाला' सबसे ऊपर है, उसके पीछे अतुल जैसे स्नेही, कर्मठ, निपुण और अनुभवी पत्रकार की दूरदर्शी सोच के सिवा और कुछ भी नहीं। अतुल ने जहाँ 'अमर उजाला' को हिमाचल में लाकर पत्रकारिता के तथाकथित एकाधिकार को समाप्त किया वहीं पत्रकारिता में स्पर्धा को भी बढ़ावा दिया जिसका सीधा लाभ हिमाचल प्रदेश में हो रही रिपोर्टिंग पर पड़ा । सरकारी प्रैस रूमों में बैठे पत्रकार गाँव-गाँव की खाक छानने को मजबूर हो गए। इस स्पर्धा में पत्रकारिता के सही मायने अब समझ में आने लगे जबकि अब तक तो सरकारी प्रैस नोट को ही खबर मान कर अखबार भरे जा रहे थे। बागवानों की समस्याएं हो, कोई जलसा-जुलूस या फिर मूलभूत सुविधाओं के लिए गाँव की दिक्कतें, अतुल ने ऐसे मुद्दों को उठाने के लिए हिमाचल में एक विशेष टीम को भेजा। पहले- पहले तो इस बात का यह कह कर भी विरोध हुआ कि ' अमर उजाला' हिमाचल प्रदेश में उत्तर प्रदेश के लोगों को ही स्थापित करवाना चाहता है, क्योंकि अधिकतर लोग जो 'अमर उजाला' में थे, वो उत्तर प्रदेश के थे या फिर हिमाचल के बाहर के। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, हिमाचल प्रदेश में इस समाचार पत्र ने अपनी पैठ बनाना शुरू कर दी, वैसे-वैसे हिमाचल प्रदेश के बेरोज़गार युवाओं और पत्रकारिता की समझ रखने वाले व्यक्तियों को 'अमर उजाला' ने स्थान देना शुरू कर दिया। आज सैंकड़ों ऐसे पत्रकार हिमाचल प्रदेश में हैं जो हिमाचली मूल के होने के साथ पत्रकारिता में सक्रिय है।
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                                     शिमला ज़िला के जुब्बल जैसे छोटे गाँव से तब मैं पत्रकारिता करता था, उस समय जुब्बल में अखवार 12 बजे से 3 बजे शाम पहुँचती थी। अगर सरकारी बस खराब हो जाए तो अखबारें दूसरे-तीसरे दिन भी पहुँचती थी। जुब्बल तो फिर भी सड़क से जुड़ा हुआ गाँव था, लेकिन ऐसी स्थिति में ज़रा सोचिए जब रिकाँगपीओ, केलँग और लाहुल स्पीति जैसे दुर्गम क्षेत्रों में अखबार भला कहाँ पहुँचती होगी। 'अमर उजाला' ने पहली बार व्यवस्था की कि उनकी अखबार टैक्सी के द्वारा दुर्गम हिमाचली क्षेत्रों में जाएगी और यथासंभव जल्दी से जल्दी पाठकों तक पहुँचेगी। इसका परिणाप साफ-साफ सामने आया जुब्बल में अखबार सुबह 8 बजे पहुँचने लगी। अखबार का सर्कुलेशन तेज़ी से फैला। प्रतिद्वंदी अखबारों को भी टैक्सी की व्यवस्था करनी पड़ी, इससे न केवल पाठक वर्ग लाभांवित हुआ बल्कि अनेक टैक्सी चालकों को भी रोज़गार मिल गया, सभी वर्गों को लाभ मिला, लेकिन इससे अखबारों पर जो आर्थिक बोझ पड़ा उसकी परवाह 'अमर उजाला' ने नहीं की। कारण स्पष्ट था कि अतुल हिमाचल में पत्रकारिता का परचम लहराना चाहते थे, बहुत से बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार दिलाना चाहते थे । इन्हीं प्रयासों के चलते अन्य समाचार पत्रों ने भी कमर कस ली इस स्पर्था में पाठकों को रिझाने के लिए कई योजनाएँ शुरू हुईं, तो कभी अखबारों को अपनी साख बचाए रखने  के  लिए दाम गिराने पड़े, अतुल ने इस स्पर्था का मुँहतोड़ जवाब तो दिया ही, साथ ही साथ पत्रकारिता के मानकों को भी गिरने नहीं दिया। यही नहीं हिमाचल में  'अमर उजाला' ने जब कदम रखे थे तो अखबारों के लिए काम करने वाले संवाददाताओं का शोषण जोर शोर से हो रहा था। यह अतुल की ही टीम थी या फिर अन्य अखबारों के इक्का-दुक्का पत्रकार जिन्हें अच्छा वेतन मिल जाता था। उस समय संवाददाताओं को समाचार पत्रों की ओर से फैक्स अथॉरिटी दिया जाना मात्र ही एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था   इस उप्ल्बधि का दंभ मैंने भी काफी समय तक भरा। लेकिन पत्रकारिता एक व्यवसाय भी हो सकती है, इसका आभास हिमाचल में 'अमर उजाला' टीम के सदस्यों को मिल रहे आकर्षक वेतनमान से हुआ  । जहाँ अन्य अखबारों में दो या तीन संवाददाता थे, वहीं 'अमर उजाला' ने मात्र शिमला में ही 25 से भी अधिक पत्रकारों की फौज से हिमाचल में पत्रकारिता का बिगुल फूँका। प्रदेश भर में इसका आकलन करें तो 'अमर उजाला' ने हर ज़िला पर अपना कार्यालय खोला और अनेक संवाददाता भी नियुक्त किये। इसी स्पर्धा में अन्य समाचार पत्रों को भी उतरना पड़ा और संवाददाताओं को आकर्षक वेतन मिलने का दौर शुरू हुआ। इस प्रकार अतुल महेश्वरी ने हिमाचल में आर्थिक शोषण झेल रहे पत्रकारों की आँखों में खुशी की जो चमक लाई, उससे प्रदेश का पत्रकारिता जगत जगमगा उठा।
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                                             आज अनेक समाचार पत्र हिमाचल से प्रकाशित होते हैं और उपमण्डल स्तर तक अखबारों के कार्यालय हैं और संवाददाताओं को वेतन की व्यवस्था भी है। हिमाचल में इस प्रकार की परम्परा एक मायने में 'अमर उजाला' के आने के बाद ही शुरू हुई। यही नही अतुल महेश्वरी को टक्कर देने के लिए अन्य समाचार पत्र भी सतर्क हुए, जिसे इन समाचार पत्रों को भी लाभ पहुँचा। आज की तारीख में अगर देखें तो हिमाचल प्रदेश में लगभग 4 लाख या इससे अधिक विभिन्न समाचार पत्र बिक रहे हैं पत्रिकाओं का आँकड़ा इसके अतिरिक्त है। हिमाचल में पत्रकारिता की उन्नति के तार अतुल महेश्वरी से सीधे-सीधे जुड़े हुए हैं। ऐसे में अतुल के जाने की खबर कितनी दुखदायी साबित हुई है इसका अंदाज़ आसानी से लगाया जा सकता है। 'अमर उजाला' की शुरूआत करने जब एस. राजेन.टोडरिया शिमला आए थे, उस समय से लेकर धर्मशाला में त्रिलोकी नाथ उपाध्याय के साथ मित्रतावश 'अमर उजाला' से जो तार जुड़े रहे ,उससे अतुल जी के दृष्टिकोण और नीति की छवि मेरे मन- मस्तिष्क में घर करने लगी। बहुत से पत्रकारिता के गुर भी सीखे। अतुल के न रहने पर आज अहसास हुआ कि यदि किसी परिवार का मुखिया स्नेह, आत्मीयता और दृष्टिकोण लेकर काम करें तो एक बहुत बड़ा कुनबा खड़ा हो जाता है। गिरीश गुरूरानी जब शिमला में मुझसे 'अमर उजाला' के बारे में बात करते है तो अतुल की झलक उनमें मिलती है, यही झलक मैंने बरसों पहले दिनेश जुयाल और अब अरुण आदित्य में देखी है। पत्रकारिता एक व्यवसाय भी हो सकता है यह हिमाचल में अतुल महेश्वरी की सोच ने साबित कर दिया, यदि ऐसा कहा जाए तो ग़लत न होगा।                       
sub heading 3                                             मेरी अतुल महेश्वरी से वर्ष 2002 में लगभग 15 मिनट की मुलाकात हुई थी, जब मैं पत्रकारिता में संघर्ष की राह पर था। ऐसे में अतुल के साथ काम करने का सपना तो साकार नहीं हुआ, परंतु उनसे जो आत्मीयता और स्नेह मिला वह अविस्वरणीय रहा। लेकिन कहीं न कहीं पत्रकारिता में उनसे मिली प्रेरणा के फलस्वरूप उनसे हुई 15 मिनट की मुलाकात से जो तार जुड़ गए थे उसका अहसास उस समय हुआ जब संभवतय़ः मेरे घर पर चाय पीने आए 'अमर उजाला' के शिमला कार्यालय में कार्यरत मेरे मित्र निक्का राम के मोबाईल पर अचानक अतुल महेश्वरी के निधन का संदेश 'जनसत्ता एक्सप्रैस' की न्यूज़ सर्विस के माध्यम से मिला। इस एस एम एस की पुष्टि जब मेरे प्रिय मित्र और् 'अमर उजाला' के हिमाचल संस्करण के संपादक गिरीश गुरूरानी ने फोन पर की तो मन को गहरा घाव लगा। अतुल के निधन मे मात्र 25 मिनट या इससे भी कम समय की अवधि में जब यह पीड़ादायक सूचना ज़ाहिर तौर पर मुझे हिमाचल में सबसे पहले मिली तो ऐसा प्रतीत हुआ मानों अतुल आखिरी विदा भी बोल-बता कर ले रहे हों।
                                           ज़ाहिर है कि 'अमर उजाला' परिवार सहित पूरे मीडिया जगत को इस घटना से गहरा सदमा लगा है, लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति का सामना करते हुए मुझे इस बात की आशा है कि अतुल ने अपनी सोच को अपनी टीम में कूट क़ूट कर भर दिया है, जिसके फलस्वरूप उनके न होने पर भी  'अमर उजाला' के माध्यम से पत्रकारिता की ये लौ जलती रहेगी  लेकिन दुःख है तो बस इस बात का कि अतुल चुपचाप, अचानक चल दिये, उनका न होना पत्रकारिता की अमूल्य क्षति है।  मन बहुत आहत
है।

साहित्यिक गतिविधियों से सराबोर रहा वर्ष 2010

                          वर्ष 2010 ढलते-ढलते हिमाचल में साहित्यिक माहौल को गर्म कर गया है। एक ओर वरिष्ठ साहित्यकार युवा रचनाकारों की पीठ थपथपाते नज़र आए तो दूसरी ओर युवा लेखकों के प्रोत्साहन के लिए कई आयोजन हुए। जहाँ अनेक पत्र-पत्रिकाएं इसी वर्ष प्रकाशित हुईं वहीं हिमाचल के बाहर से प्रकाशित होने वाली अनेक साहित्यिक पत्रिकाओ ने हिमाचल में हो रहे सृजनात्मक लेखन का कड़ा नोटिस लेते हुए हिमाचल विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय ले लिया। ग़ैर-सरकारी साहित्यिक संस्थाओं की जो सक्रियता इस वर्ष नज़र आई वो इससे पहले कभी देखने को नहीं मिली। अनेक युवा लेखकों के संग्रह जहां चर्चा का विषय रहे, वहीं इनकी कविताओं को पाठकों ने हाथों-हाथ लिया। इसके विपरीत वरिष्ठ साहित्यकारों ने लेखन के प्रति इक्का-दुक्का ही सक्रियता दिखाई, फिर भी नव-लेखन को प्रोत्साहित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।
                              ‘विपाशा’ पत्रिका द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता में ऊना के युवा कवि कुलदीप शर्मा ने इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त कर यह साबित कर दिया कि हिमाचल में युवा लेखन किसी से पीछे नहीं। दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश के साहित्यिक मंच ‘शिखर’ ने काफी अरसे बाद युवा रचनाकारों को लेखन के लिये प्रेरित करने में अहम भूमिका अदा की। युवा कवि आत्मा राम रंजन को ‘शिखर’ सम्मान दिया जाना इसका स्पष्ट प्रमाण तो है ही साथ ही यह प्रयास युवा और वरिष्ठ लेखकों के बीच की खाई को भी पाटता है। नव लेखन में सम्भावनाओं की कोंपलें भी फूटती नज़र आईं हैं। युवा कवि-कहानीकारों ने इस वर्ष देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उपस्थिति दर्ज करा कर गंभीर लेखन का बिगुल बजाया है। इसी बीच अकादमी सचिव पद पर तुलसी रमण के आसीन होने से काफी समय से चली आ रही अटकलों को भी विराम  मिल   गया। युवा कवि सुरेश सेन ‘निशांत’ का कविता संग्रह ‘वो जो लकडहारे नहीं है’ और ‘आकंठ’ का अतिथि संपादन काफी चर्चा में रहा । प्रदेश से बाहर प्रकाशित होने वाली दो पत्रिकाओं ने हिमाचल  में लिखे जा रहे हिन्दी साहित्य पर हिमाचल विशेषांक प्रकाशित करने का निर्णय ले लिया। इस कड़ी में पहल करने में ‘आकंठ’ पत्रिका बाज़ी मार ले गई और ऊना में इसका विमोचन समारोह एक सफल आयोजन कहा जा सकता हैं। बहुत सी कमियां रह जाने के बावजूद भी इस पहल के लिए पत्रिका के संपादक मंडल की सराहना की जानी चाहिए। इसी प्रकार के दूसरे प्रयास के रूप में आरा (बिहार) से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘जनपथ’ का हिमाचल अंक भी वरिष्ठ कहानीकार राज कुमार‘राकेश’ के संपादन में प्रकाशित होने की कतार में हैं।
                                 हिमाचल के साहित्य जगत में वर्ष 2010 में अपनी तरह के अनूठे प्रयास हुए हैं, जो साहित्य जगत में एक तिलमिलाहट पैदा करते हैं। बिलासपुर में रत्न चंद ‘निर्झर’ ने हमेशा की तरह साहित्य में सक्रियता दिखाते हुए ‘हिमाचल साहित्यकार सभा’ का गठन कर अनेक गोष्ठियों को अंजाम दिया है। ‘शिखर’ सम्मान के बाद ‘‘सेतु’’ सम्मान घोषणा भी ध्यानाकर्षण करती है। दियोटसिद्ध में भाषा अकादमी और उर्दू अनुसंधान केंद्र सोलन के संयुक्त तत्वाधान में साहित्यकारों की बहुभाषी गोष्ठी ने भी रंग दिखाया है, इस गोष्ठी में जहां गंभीर चर्चाएं हुई,वहीं विक्रम मुसाफिर जैसे तेज़ तर्रार कवि खुल कर सामने आए आए, प्रदीप सैनी,राजीव त्रिगर्ती, निधि शर्मा और अरुणेश कुछ ऐसे युवा कवि हैं जिनकी रचनाएं ध्यानाकर्षित करवाती हैं। लाहुल की घाटियों से निकलने वाली अजेय की कविताओं से साहित्य का तापमान सरगर्म हो उठता है। योगेश्वर शर्मा की ‘पानी पी लो भैया’ कहानी उन्हें एक बार फिर हिमाचल के कहानीकारों में सबसे अलग ला खड़ा करती है। वर्ष 2010 में प्रो० चमन लाल गुप्त, ओम अवस्थी, और निरंजन देव शर्मा आलोचकों के रूप में सक्रिय नज़र आते हैं।
                       Megazine collageकाफी प्रतीक्षा के बाद कुल्लू से निरंजन देव शर्मा के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘असिक्नी’ का दूसरा अंक भी 2010 की ही उपलब्धि है, पत्रिका में रोचक सामग्री तो पढ़ने को मिलती है, साथ ही साथ इसकी साज सज्जा और छपाई भी अच्छी है। ‘हिमप्रस्थ’ पत्रिका का प्रकाशन भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यादवेंद्र शर्मा के संपादन में इस पत्रिका का स्तर सरकारी बंदिशों के बावजूद भी साहित्य के क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। गुरमीत बेदी ऊना से ‘पर्वत राग’ का निरंतर प्रकाशन कर अनेक प्रतिभाओं को समक्ष लाने में सफल हुए हैं। वहीं मुम्बई में कुशल कुमार और वरिष्ठ साहित्यकार अनूप सेठी ‘हिमाचल मित्र’ पत्रिका का निरंतर प्रकाशन कर साहित्य की अलख जगाए हुए हैं इस पत्रिका की रोचक सामग्री में हिमाचल के कहानीकारों पर प्रकाशित होने वाला ‘मेरी प्रिय कहानी’ स्तम्भ विशेष ध्यान खींचता हैं। ।
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और साहित्यकार देवेन्द्र गुप्ता के संपादन में ‘सेतु’ का कहानी विशेषांक भी 2010 में प्रकाशित हुआ है और पत्रिका चर्चा का विषय रही है। इस पत्रिका का हिमाचल से निरंतर प्रकाशन हिमाचल की साहित्यिक सक्रियता को दर्शाता है। साहित्यिक गतिविधियों सर्वाधिक सक्रिय रहने वाले स्थान ठियोग में साहित्यिक तापमान में गिरावट देखने को मिली। ‘सर्जक’ ने एकाध गोष्ठी कर साहित्यिक आहुती तो डाली लेकिन अरसे से ‘सर्जक’ पत्रिका की उम्मीद लगाए लेखकों को इस बार भी निराशा ही हाथ लगी है। मुरारी शर्मा, सुरेश शांडिल्य, ओम भारद्वाज, इशीता आर गिरीश की कहानियां ध्यान खींचती है।
                                   हिमाचल के वरिष्ठ साहित्यकार श्रीनिवास श्रीकांत के संपादन में ’’कथा में पहाड़’’ शीर्षक से प्रकाशित कहानी संकलन भी 2010 की ही उपलब्धि है, जिसमें हिमाचल प्रदेश सहित भारत के पर्वतीय राज्यों के बहुत से वरिष्ठ एवम युवा कहानीकारों की कहानियां प्रकाशित हैं। कुल्लू में ‘भारत भारती स्कूल’ की नवलेखन को लेकर होने वाली कार्यशाला भी चर्चाओं में रही, वहीं कुल्लू के ही हरिपुर महाविद्यालय में हिन्दी विpramukha gatividhiyanभाग की विभागाध्यक्षा सुश्री उरसेम लता और प्राचार्य कमलकांत ने युवाओं में साहित्य के प्रति रुझान को बढ़ाने के लिए एक नया प्रयोग कर सार्थक पहल की ।  
हरिपुर(कुल्लू) महाविद्यालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक
हिमाचल के पाँच कहानीकार और लेखकों की रचनाओं पर महाविद्यालय के विभिन्न कक्षा के छात्रों से समीक्षाएँ करवाई गईं और ‘हिमाचली कवियों व कथाकारों का हिन्दी साहित्य में योगदान’ शीर्षक से एक पुस्तक का प्रकाशन भी किया गया, जिसमे ये समीक्षाएं शामिल हैं। यह आयोजन सराहनीय और बेहद चर्चा का विषय रहा। सरकार द्वारा यशपाल जयंती, गुलेरी जयंती सहित निर्धारित अनेक आयोजन भी उल्लेखनीय रहे। वहीं भाषा अकादमी का कुल्लू में पहाड़ी भाषा का आयोजन भी इसी वर्ष की साहित्यिक उपलब्धियों में है। बिलासपुर में लोक गायिका गंभरी देवी पर अकादमी द्वारा एक डाक्यूमैंटरी फिल्म भी बनाई गई। बिलासपुर की ज़िला भाषाधिकारी डॉ० अनिता शर्मा ने हिन्दी और इंटरनैट पर अनेक गोष्ठियां बिलासपुर में करवाईं जिसका लाभ लेखकों सहित कई सरकारी कर्मचारियों ने भी लिया।

                             प्रकाशित संग्रहों में श्रीनिवास श्रीकांत का ‘‘हर तरफ समंदर है’’ ग़ज़ल संग्रह भी प्रमुख है, राजीव त्रिगर्ती का कविता संग्रह ‘गूलर का फूल’ यूँ तो 2008 में प्रकाशित हुआ लेकिन चर्चाओं में 2010 में आया। कुंअर दिनेश का काव्य संग्रह ‘धूप दोपहरी’ भी ध्यान खींचता है। कहानी संग्रहों में युवा साहित्यकार एवम पत्रकार मुरारी शर्मा के कहानी ‘बाणमूठ’ ने अपना विशेष स्थान बनाया है। संग्रह को हिमाचल के बाहर कई सम्मान भी इसी वर्ष प्राप्त हुए हैं। patrikaenएस. आर. हरनोट का कहानी संग्रह ‘मिट्टी के लोग’ भी 2010 की ही उपलब्धि है। बद्री सिंह भाटिया का कहानी संग्रह ‘वह गीत हो गई’ भी इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। के. आर.भारती का कहानी संग्रह ‘‘गोरख एवम अन्य कहानियां' भी एक संग्रहणीय कृति बना है। सुशील कुमार ‘फुल्ल’ का ‘होरी की वापसी’ और जोगिन्द्र यादव का ‘माँ का बलिदान’ संग्रह भी इसी वर्ष प्रकाशित हुए हैं। सुदर्शन वशिष्ठ का यात्रा वृतांत ‘हिमालय गाथा’ के दो अंक इसी वर्ष के अंतिम दिन प्रकाशित हुए हैं। प्रकाशनाधीन संग्रहों में रेखा का काव्य संग्रह ‘तेरा कौन रंग रे’, तेजराम शर्मा का ‘नाटी का समय’ आदि संभावित संग्रह हैं। prem bharadwajकहानीकार राजकुमार राकेश भी बहुत सारे संग्रहों की पांडुलिपियों को तैयार करने में जुटे हुए हैं। सुदर्शन वशिष्ठ, दीनू कश्यप, अवतार एनगिल आदि लेखकों के के संग्रहों की रूप-रेखा भी वर्ष 2010 में बन चुकी है और वर्ष 2011 तक इनके प्रकाशित हो जाने की भरपूर संभावनाएं हैं।
                            दिन-ब-दिन बढ़ते इंटरनैट के महत्व को भी हिमाचल के साहित्यकारों ने नज़रअंदाज़ नहीं किया है, ब्लॉग की दुनियाँ में द्विजेंद्र ‘द्विज’ रोशन जायसवाल ‘विक्षिप्त’ सहित अनेक लेखकों के ब्लॉग इंटरनैट पर नज़र आते हैं, जो साहित्य और संस्कृति की अनेक झलकियाँ दिखाते हैं। ब्लॉग की दुनियाँ में रतन चंद ‘रत्नेश’ ने भी बहुत सी रचनाएं प्रस्तुत की हैं, इसी तरह अजेय,निरंजन देव शर्मा, अनूप सेठी, नवनीत शर्मा,तुलसी रमण, श्रीनिवास श्रीकांत, तेज राम शर्मा, दीनू कश्यप, मुरारी शर्मा, ओम भारद्वाज और मोहन साहिल आदि लेखकों के अपने ब्लॉग है। 
साहित्य में ऑनलाईन योगदान के लिए चर्चित साहित्यिक वैबसाईट ‘कविता कोश’ में भी हिमाचल के साहित्यकारों के पूरे काव्य संग्रह ऑनलाईन पढ़ने को मिल जाते हैं। ‘कविता कोश’ के इस सपने को साकार करने में कोश के संस्थापक और युवा कंप्यूटर इंजीनियर ललित कुमार और लेखक अनिल जनविजय का महत्वपूर्ण योगदान है, हिमाचल के रचनाकारों को ऑनलाईन जोड़ने की पहल युवा ग़ज़लकार द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ने की है। ‘कविता कोश’ इंटरनैट में साहित्य की एकमात्र ऐसी साईट है जहाँ हिन्दी साहित्य सहित साहित्य की अनेक विधाओं का वृहद संग्रह है। हिमाचल से संबंध रखने वाले कुछ साहित्यिक ब्लॉग और बैवसाईटो में कुछ नाम जो ध्यान में आते हैं उनका विवरण इस प्रकार है:-blog collage
                              sambhavit sangraha                                   वर्ष 2010 की साहित्यिक गतिविधियां जहां नए वर्ष में हिमाचल प्रदेश में गंभीर और सारगर्भित लेखन के प्रति आश्वस्त करती हैं, वहीं इस वर्ष हिमाचल के साहित्यिक गलियारों में रेखा और अवतार एनगिल जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के स्वास्थ्य में सुधार होने की खबरें भी सुकून देती हैं। और साथ ही साथ यह उम्मीद भी जगती है कि वर्ष 2011 में ये साहित्यकार पुन: नई कविताओं और जोश के साथ युवाओं के बीच कविताएँ पढ़ते नज़र आएंगे। वरिष्ठ साहित्यकार रतन सिंह ‘हिमेश’ के ठहाकों से फिर माल रोड़ गूँज उठे । अनिल राकेशी, अरविंद रंचन और कवियत्रि सरोज परमार का भी कोई सुराग़ मिले, ऐसी उम्मीद है। मोहन ‘साहिल’ की कविता ठियोग से शिमला के रिज मैदान पर इतराती नज़र आए और सत्येन शर्मा का गाना ‘हाल पूछने आए ठाकुर’ कानों में मिशरी घोले। शबाब ‘ललित’ के शेरों की महफिल सजे, लाहौल से अजेय की कविता हमेशा की तरह खुश्बू की तरह फैल जाए। नवनीत शर्मा अपने तेवर में नई-नई रचनाएं लिखें। सुन्दर लोहिया और योगेश्वर शर्मा की कहानियाँ फिर रस्ता दिखाए। दीनू कश्यप का कविता संग्रह किसी हसीन सपने सा दस्तक दे। कुलराजीव ‘पंत’ की कविताएं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को छोड़कर भारत भ्रमण पर निकल पड़े, यादवेन्द्र शर्मा की कविताएँ फिर से आंदोलित करें। द्विजेंद्र‘द्विज’ की गज़लें गूँजे, चंद्र रेखा ‘ढडवाल’ के स्वर फिर से कहे ‘ताल सरोवर पनघट तेरे, अपनी तो बस प्यास रे जोगी’ मधुकर भारती की पोटली से ‘सर्जक’ बाहर निकल आए। नया वर्ष साहिय का एक नया सूरज लेकर उगे। इन्हीं खट्टी-मीठी साहित्यिक यादों को लिए वर्ष 2010 का सूर्य मानो यह कहते हुए डूब रहा है:- अलविदा 2010 स्वागत 2011।

हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका 'असिक्नी' आपकी नज़र

तकरीबन तीन साल की लम्बी प्रतीक्षा के बाद असिक्नी का दूसरा अंक प्रकाशित हो गया है. *असिक्नी * साहित्य एवम विचार की पत्रिका* है जो कि सुदूर हिमालय के सीमांत अहिन्दी प्रदेशों में हिन्दी भाषा तथा साहित्य को लोकप्रिय बनाने तथा इस क्षेत्र की आवाज़ को, यहाँ के सपनों और *संकटों* को शेष दुनिया तक पहुँचाने के उद्देश्य से रिंचेन ज़ङ्पो साहित्यिक -साँस्कृतिक सभा केलंग अनियतकलीन प्रकाशित करवाती है. सभा के संस्थापक अध्यक्ष श्री त्सेरिंग दोर्जे हैं तथा पत्रिका का सम्पादन कुल्लू के युवा आलोचक निरंजन देव शर्मा कर रहें हैं।



170 पृष्ठ की पत्रिका का गैटअप सुन्दर है, छपाई भी अच्छी है। मुख पृष्ठ पर तिब्बती थंका शैली में बनी बौद्ध देवी तारा की पेंटिंग है. भीतर के मुख्य आकर्षण हैं :
स्पिति के प्रथम आधुनिक हिन्दी कवि मोहन सिंह की कविता हिमाचल में समकालीन साहित्यिक परिदृष्य पर कृष्ण चन्द्र महादेविया की रपट। परमानन्द श्रीवास्तव द्वारा स्नोवा बार्नो की रचनाधर्मिता को पकड़ने सार्थक प्रयास। पश्चिमी भारत की सहरिया जनजाति पर रमेश चन्द्र मीणा संस्मरण। विजेन्द्र की किताब आधी रात के रंग पर बलदेव कृष्ण घरसंगी और अजेय की महत्वपूर्ण टिप्पणियां। साथ में विजेन्द्र जी के अद्भुत सॉनेट लाहुल के पटन क्षेत्र में बौद्ध समुदाय की विवाह परम्पराओं पर सतीश लोप्पा का विवरणात्मक लेख। लाहुली समाज के विगत तीन शताब्दियों के संघर्ष का दिल्चस्प लेखा जोखा त्सेरिंग दोर्जे की कलम से। इतिहासकार तोब्दन द्वारा परिवर्तन शील पुरातन गणतंत्रात्मक जनपद मलाणा पर क्रिटिकल रपट।नूर ज़हीर, ईशिता आर 'गिरीश ',ज्ञानप्रकाश विवेक , मुरारी शर्मा की  कहानियां. मधुकर भारती,उरसेम लता, त्रिगर्ती, अनूप सेठी , आत्माराम रंजन, सुरेश सेन, मोहन साहिल, सुरेश सेन 'निशांत 'और सरोज परमार सहित गनी, नरेन्द्र, कल्पना ,बी. जोशी इत्यादि की कविताएं. प्रकाश बादल की ग़ज़लें। हाशिए की संस्कृतियों और केन्द्र की सत्ता के द्वन्द्व पर विचरोत्तेजक आलेख, पत्र, व सम्पादकीय। पत्रिका मँगवाने का पता : भारत भारती स्कूल, ढालपुर, कुल्लू, 175101 हि।प्र। दूरभाष : 9816136900 

(रिपोर्ट मैंने अजेय भाई के ब्लॉग से चुराई है, यद्यपि उन्होंने "मेरा ब्लॉग सुरक्षित है" का ताला लगाया था, लेकिन समयाभाव के चलते मैंने सोचा नई रिपोर्ट लिखने से बेहतर है कि ताला ही तोड़ लिया जाए। सारे ताले चोरी के लिए ही तोड़े जाएँ ऐसा ज़रूरी नहीं।अजेय भाई से क्षमा याचना के साथ!)

उसका चेहरा



नज़्म,कविता,शेर, ग़ज़ल उसका चेहरा।
लहलहाती एक फसल उसका चेहरा।


वो मुझको  तो अपना सा ही लगता है,
चाहे असल हो या नकल उसका चेहरा।


हर दिल को मुमताज़ कर दे पल भर में,
शहाजहाँ का  ताजमहल  उसका चेहरा।


घड़ी भर को ही तो हम ठहरे थे,

समय जैसे गया निकल उसका चेहरा।
 

दरिया में  कंकर जैसे कोई मार गया,
गौर से देखो ऐसी हलचल उसका चेहरा।
 

मंहगाई में ग़रीबों से सब धंसते जाएं,
नहीं है वैसा, पर है दलदल उसका चेहरा,
 

फुटपाथ पर कई रोज़ के भूखे सा मैं,
इसी भूख में आटा- चावल उसका चेहरा।
 

पल भर में है रविवार की छुट्टी सा और,
पल में होता सोम-मंगल उसका चेहरा।
 

मंहगाई भत्तों की आस में बाबू से सब,
सियासी झाँसे सा चपल उसका चेहरा।
 

रस्ता भूलूँ उसमें, या फिर लुट जाऊँ मैं,
मुझको लगता है इक चंबल उसका चेहरा।

बिलासपुर में नन्हें फूल बिखेर रहे कविता की ख़ुशबू




बच्चों को कविता लेखन के प्रोत्साहन हेतु एक कार्यशाला का आयोजन


50 बच्चे ले रहे भाग

बेटियों की प्रतिभागिता अधिक

इन दिनों हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में ज़िला भाषाधिकारी डॉ0 अनिता के आग्रह पर मैं एक वर्कशॉप में हिस्सा लेने आया हूँ। वर्कशॉप में आने का निमंत्रण इसी लिए स्वीकार किया क्योंकि मुझे जवाहर नवोदय विद्यालय में स्कूली बच्चों के साथ समय बिताना था और इन बच्चों को Hopes and challenges of youth विषय पर केंद्रित कविताएँ लिखने के लिए प्रेरित करना था। डॉ0 अनिता एक जागरूक महिला अधिकारी तो हैं ही साथ ही उनका आग्रह टालना मेरे लिए इसलिये भी मुश्किल था क्योंकि उनका मैं बहुत आदर करता हूँ। इसके साथ-साथ बिलासपुर आने की लालसा इसलिए भी रहती है कि मेरे परम मित्र और बड़े भाई अरुण डोगरा के साथ कुछ समय बिताने का अवसर मिल जाता है। सुमन भाभी (अरुण भाई की पत्नि) के हाथों का लज़ीज़ खाना और उनका स्नेह भला हमेशा कहाँ मिलता है। इसी लालच में जब मैंने बिलासपुर के कोठीपुरा में स्थित नवोदय विद्यालय के बच्चों ने जो मेरा स्वागत किया, उससे मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। बच्चों के बीच आकर मुझे अपना स्कूली जीवन याद आ गया और मैं उसे इन बच्चों के साथ जीने भी लगा। मैंने पाया कि जवाहर नवोदय विद्यालय के बच्चों में भविष्य के अनेक अच्छे कवि छुपे हैं। इन बच्चों को पहले से ही स्थानीय वरिष्ठ कवि विद्वान और कवि डॉ0 लेख राम और वरिष्ठ कवि एवम संगीत के अध्यापक रहे श्री अनूप सिंह मस्ताना ने बहुत कुछ निखार दिया था। बस इन बच्चों में कमी है तो बस इस बात की कि इन्होंने कविता का ज्ञान तो प्राप्त किया ही है लेकिन कविताएं पढ़ी नहीं है। तो अब मैं उन्हें कुछ अच्छे कवियों की कविताएँ पढ़वाऊँगा और उसके बात इन बच्चों की लेखनी के सुधार को देखूँगा। इस कार्यशाला में लिखी गई कविताओं में से ही चुन कर नवोदय विद्यालय एक कविता संग्रह को प्रकाशित करने जा रहा है जिससे इन नन्हें फूलों की ख़ुशबू की महक यानी इनकी कविताएँ अपनी अलग ही छाप छोड़ जाएगी। इसी विचार को आपसे साझा कर रहा हूँ कार्यशाला में एक हफ्ता रहूँगा और मेरा प्रयास रहेगा कि इन बच्चों की कविताओं को आपसे साझा करूँ और आपका प्रोत्साहन इन बच्चों को मिले ताकि इनकी लेखनी में सुधार आए और इनकी रचनाएँ किसी दिशा की तरफ इंगित करती नज़र आएँ। इन्हीं बच्चों में से एक छात्रा की कविता मुझे पहले दिन सबसे अच्छी लगी क्योंकि इस छात्रा की कविता में कहीं कहीं सृजनात्मकता औरों से अधिक है, यद्पि इन बच्चों की कविताओं को और तराशे जाने की अभी आवश्य्कता है। इस छात्रा की कविता देखें और अपने विचार मुझसे साझा भी करें। कार्यशाला की गतिविधियों से आपको अवगत करवाता रहूँगा और आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।
नवोदय विद्यालय की छात्रा वनीता जिसकी कविता शीघ्र पोस्ट करने वाला हूँ।

कार्यशाला की कुछ झलकियां:
कार्यशाला में बच्चों के बीच मैं भी बच्चा हो गया


कार्यशाला में नवोदय विद्यालय बिलासपुर (कोठीपुरा) की प्रधानाचार्य अनूपा ठाकुर्



 
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